अमेरिका और भारत के बीच तनाव का नया दौर शुरू हो गया है। इस बार विवाद की वजह बनी हैं ट्रंप की करीबी सलाहकार और कट्टरपंथी कार्यकर्ता लौरा लूमर। उनका दावा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब अमेरिकी कंपनियों को भारत में IT आउटसोर्सिंग करने से रोकने की सोच रहे हैं। यह खबर भारतीय IT सेक्टर के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
भारत-अमेरिका रिश्तों में खटासटाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, लौरा लूमर ने सोशल मीडिया पर लिखा, “राष्ट्रपति ट्रंप अब अमेरिकी IT कंपनियों को भारत में काम आउटसोर्स करने से रोकने पर विचार कर रहे हैं। यानी अब आपको कॉल सेंटर में अंग्रेजी के लिए 2 दबाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कॉल सेंटर्स को फिर से अमेरिकी बनाएं!” हाल ही में ट्रंप ने भारत से आने वाले आयात पर 50% टैरिफ लगाया है, जो भारत के रूस से तेल खरीदने के जवाब में उठाया गया कदम माना जा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव और गहरा गया है। इस बीच H-1B वीजा प्रोग्राम और आउटसोर्सिंग पर बहस फिर से गर्म हो गई है। ट्रंप समर्थक मैगा (MAGA) कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारतीय IT प्रोफेशनल्स अमेरिकी नौकरियां “हड़प” रहे हैं।
आउटसोर्सिंग क्यों बनी विवाद की जड़?अमेरिका की कई कंपनियां अपनी कस्टमर सर्विस और IT सेवाएं भारत को आउटसोर्स करती हैं। ऐसा करने से उनकी लागत कम होती है और उन्हें प्रशिक्षित कर्मचारी मिलते हैं। भारत में काम करने वाले कर्मचारियों को अमेरिकी नाम और उच्चारण तक सिखाया जाता है ताकि ग्राहकों को लगे कि वे किसी स्थानीय व्यक्ति से बात कर रहे हैं। लेकिन ट्रंप समर्थकों का मानना है कि यह प्रथा अमेरिकी कामगारों के लिए खतरा है। उनका कहना है कि इससे स्थानीय लोगों को नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं।
अंग्रेजी पर लूमर का तंजलौरा लूमर ने एक और पोस्ट में तंज कसते हुए लिखा, “मुझे बहुत खुशी है कि ट्रंप उस दौर को खत्म करने जा रहे हैं, जहां अंग्रेजी बोलने के लिए 2 दबाना पड़ता है और फिर भी आपको कोई ऐसा मिलता है जो अंग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाता। बहुत अच्छा!” दरअसल, अमेरिका में ज्यादातर कॉल सेंटर्स में कॉल की शुरुआत ऑटोमेटेड मैसेज से होती है – 1 दबाएं स्पैनिश के लिए, 2 दबाएं अंग्रेजी के लिए। लूमर ने इस बहाने भारत में काम करने वाले कर्मचारियों की अंग्रेजी क्षमता पर सवाल उठाया है।
क्या है हकीकत?Pew Research के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 84% लोग अंग्रेजी धाराप्रवाह बोल सकते हैं। इनमें से 28% लोग घर पर सिर्फ अंग्रेजी बोलते हैं, जबकि 56% लोग दूसरी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी में भी पारंगत हैं। वहीं, अमेरिका में करीब 78% लोग घर पर अंग्रेजी बोलते हैं, जबकि 14% लोग अन्य भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि भारतीय कर्मचारियों की अंग्रेजी पर सवाल उठाना बेबुनियाद हो सकता है।
भारत के लिए क्यों अहम है यह मुद्दा?भारत की अर्थव्यवस्था में IT और BPO सेक्टर की अहम भूमिका है। इन उद्योगों पर लाखों नौकरियां टिकी हैं। अगर अमेरिका आउटसोर्सिंग पर रोक लगाता है, तो भारतीय कंपनियों और युवाओं पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के लिए आउटसोर्सिंग पूरी तरह रोकना आसान नहीं होगा। भारतीय कंपनियां कम लागत पर बेहतर सेवाएं देती हैं, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए फायदेमंद है।
FAQसवाल 1: क्या अमेरिका सचमुच भारत को IT आउटसोर्सिंग रोक देगा?
जवाब: अभी यह सिर्फ एक दावा है। इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
सवाल 2: भारत पर इसका क्या असर होगा?
जवाब: IT और BPO सेक्टर पर बड़ा असर पड़ सकता है, जहां लाखों लोग काम करते हैं।
सवाल 3: क्या भारतीय कर्मचारी अंग्रेजी में कमजोर हैं?
जवाब: नहीं। Pew Research के मुताबिक, 84% भारतीय अंग्रेजी धाराप्रवाह बोल सकते हैं।
सवाल 4: H-1B वीजा विवाद क्या है?
जवाब: यह एक वीजा प्रोग्राम है, जिसके तहत भारतीय टेक कर्मचारी अमेरिका में काम करते हैं। ट्रंप समर्थक इसे अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा मानते हैं।
सवाल 5: क्या आउटसोर्सिंग से अमेरिकी कंपनियों को फायदा होता है?
जवाब: हां, उन्हें कम लागत में बेहतर सेवाएं मिलती हैं।
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