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सनातन परंपराओं के उत्थान से होगा भारत का उत्थान: क्षेत्र प्रचारक

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गोरखपुर, 10 अगस्त (Udaipur Kiran) । सनातन परम्परा में सर्व हिन्दू समाज निहित है,जिसमें सम्पूर्ण समाज को साथ में एकात्म भाव से लेकर चलता है। सनातन परंपराओं के उत्थान से ही भारत का उत्थान ,समाज का उत्थान होगा।। भविष्य में सनातन परम्परा का नैतिक निर्वहन करना हम सभी का कर्तव्य है।। इसी भावना से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रक्षाबंधन उत्सव मनाता है। संघ के छ: उत्सवों में से एक रक्षाबंधन उत्सव है। हमारा जन्म जिस सनातन परम्परा में हुआ है, वहाँ प्रत्येक दिन कोई न कोई उत्सव या पर्व मनाया जाता है। पूरा सावन ही उत्सव सा लगता है। बुन्देलखण्ड में पूरे सावन भर आल्हा-ऊदल का उत्सव मनाया जाता है, गीत गाए जाते हैं। हर दिन पावन की भावना से काशी में 365 दिन त्योहार मनाए जाते हैं। ये हमारे उत्सव-त्योहार नहीं हमारी परम्परा है। समाज-रचना को लम्बे समय तक चलाए जाते रहने के कारण हमारे पूर्वजों ने ऐसी रचना की। अभी आपने ‘नागपंचमी’ का त्योहार मनाया होगा जिसमें विषैले नाग को भी पूजा जाता है। हिन्दू धर्म कितना महान है! सम्पूर्ण उत्तर भारत में ‘दशहरा’ का पर्व उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दक्षिण भाग द्वारा बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित रक्षाबंधन उत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्षेत्र प्रचारक अनिल ने कही।।

उन्होंने उपस्थितजन को संबोधित करते हुए कहा कि यह देश हजारों वर्ष तक विधर्मियों के अत्याचार को झेला है पर इसके बावजूद कुछ बिगाड़ नहीं पाया, हमारी सनातन परम्पराएँ विद्यमान रहीं। सेनाएँ युद्ध हार गईं लेकिन यहाँ का जनमानस कभी हार नहीं माना। रक्षाबंधन का इतिहास आज सिमटता हुआ केवल भाई-बहन के पर्व के रूप में रह गया है। सरकारी गजेटियर में दर्ज है ‘रामलीला मैदान’। हमारे पूर्वजों ने रामलीला का मंचन कराया, आज ये मैदान कब्जे कर पचा लिए गए हैं। कहीं-कहीं नाममात्र को खानापूर्ति कर दी जाती है। परम्पराएँ धीरे-धीरे जा रही हैं। आज त्योहार मनाते भी हैं तो ‘पिकनिक’ के रूप में। हमें अपने कर्तव्य याद करने की जरूरत है।

अभी प्रयागराज में महाकुम्भ मनाया गया। वहां कोई मंदिर नहीं है, कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन लोग गए डुबकी लगाए और गंगाजल लेकर चले आए। ये हमारी परम्पराएँ ही हैं जिन्होंने जनमानस को बांध कर रखा है। हमें अपने मूल्यों को सँभाल कर रखना है।

अगर गरीबी ‘मतान्तरण’ का कारण होता तो भारत कभी का ईसाई राष्ट्र हो गया होता। आपके घर जो काम करने वाली आती है, उसे आपने कभी साथ बैठकर नाश्ता कराया क्या? हमारी-आपकी जिम्मेदारी है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नहीं, सरकार की नहीं। हमारे पूर्वजों ने रिश्तों को बनाकर रखा था। सनातन परम्पराओं को लेकर हमें चलना होगा, और ये काम हमें अपने परिवार से शुरू करना होगा। खाना-पीना, मौजमस्ती का अवसर नहीं है त्योहार, हमें परम्पराओं को बताना होगा, इतिहास को बताना होगा। रामनगर की रामलीला, प्रत्येक दिन 20-25 हजार की संख्या आती है। ये लोग रोज आते हैं एक महीना तक। यह सनातन की ताकत है।

कार्यक्रम का शुभारंभ भगवा ध्वजारोहण करके हुआ। तत्पश्चात मंचासीन अतिथिगण क्षेत्र प्रचारक अनिली,प्रांत संघचालक डॉ महेंद्र अग्रवाल ,कार्यक्रम अध्यक्ष हरमीत सिंह छतवाल,भाग संघचालक ओम जालान द्वारा दीप प्रज्वलन व भारत माता, डॉ हेडगेवार जी और गुरु गोल्वरकर जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया। अतिथियों द्वारा परम पवित्र भगवा ध्वज में रक्षा सूत्र बांधकर धर्म, संस्कृति व देश की रक्षा का संकल्प लिया गया।।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि गोरखपुर के प्रतिष्ठित व्यवसायी हरमीत सिंह छतवाल ने भारत माता के उद्घोष के साथ अपने संबोधन को शुरू करते कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रहा है। आज भारत का जो एकात्म स्वरूप दिख रहा है इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत बड़ी भूमिका है। जिसके कारण आज पुनः भारत विश्व गुरु की कल्पना को साकार करने जा रहा है।

कार्यक्रम का संचालन सह भाग कार्यवाह राजेश, एकलगीत भाग बौद्धिक शिक्षण प्रमुख निकेश और अमृतवचन भाग विद्यार्थी कार्य प्रमुख सौरभ ने किया। कार्यक्रम का समापन संघ प्रार्थना के साथ हुआ। उक्त कार्यक्रम में सरस्वती शिशु मंदिर पक्कीबाग के छात्र छात्राओं द्वारा समाजिक समरसता संबंधित गीत प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सह प्रांत प्रचारक सुरजीत,सह विभाग संघचालक आत्मा सिंह,विभाग प्रचारक अजय नारायण,प्रांत सह व्यवस्था प्रमुख सुरेन्द्र,भाग प्रचारक मनीष, महापौर डॉ मंगलेश, मदन मोहन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो जे पी सैनी, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ के एन सिंह,पुनीत पांडेय, डॉ संजयन त्रिपाठी,पद्माकर ,संजय सागर,संजय शुक्ला,शशि भूषण आदि उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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