सिरसा से कांग्रेस के विधायक गोकुल सेतिया ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर तीखा हमला किया है और भाजपा की नीतियों की सराहना की है। उनके इस बगावती रुख और मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ बढ़ती नजदीकियों ने हरियाणा की राजनीतिक स्थिति में हलचल पैदा कर दी है। सेतिया ने फेसबुक पर अपनी पार्टी के हाईकमान की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए अपनी जीत के बावजूद उपेक्षा का अनुभव साझा किया। क्या यह बगावत कांग्रेस में बदलाव का संकेत है? आइए, इस घटनाक्रम की गहराई में जाएं।
हाईकमान पर सवाल उठाते हुए
गोकुल सेतिया ने कांग्रेस के हाईकमान पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि दिल्ली में होने वाली बैठकों में विधायकों को आमंत्रित नहीं किया जाता। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या केवल पुराने नेताओं को ही प्राथमिकता दी जाती है, जबकि मेहनत करके जीतने वाले विधायकों की कोई अहमियत नहीं है? सिरसा विधानसभा का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उनकी सीट पर सभी पार्टियों ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा था, फिर भी उन्होंने जीत हासिल की।
उपेक्षा का अनुभव
सेतिया ने नगर परिषद चुनाव में कांग्रेस की हार का जिक्र करते हुए हाईकमान की उदासीनता पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे कम वोट मिले, लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं आया। हार के बाद भी हाईकमान ने कोई चर्चा नहीं की। यह बयान उनकी नाराजगी को दर्शाता है और कांग्रेस के आंतरिक ढांचे पर सवाल खड़ा करता है।
भाजपा की सराहना: क्या है रणनीति?
गोकुल सेतिया की भाजपा और मुख्यमंत्री नायब सैनी की तारीफ ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने 8 अप्रैल को चंडीगढ़ में सैनी के सरकारी आवास पर किसान मुद्दों पर चर्चा की थी। इस मुलाकात के बाद सेतिया ने सैनी के व्यवहार की प्रशंसा की और कहा कि उन्हें पहली बार इतना सम्मान मिला। इसके साथ ही, उन्होंने भाजपा की नीतियों की भी सराहना की।
सिरसा में भाजपा की स्थिति
सिरसा विधानसभा में भाजपा की स्थिति हमेशा से कमजोर रही है और यह पूर्व मंत्री गोपाल कांडा पर निर्भर रही है। हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रोहताश जांगड़ा को टिकट दिया था, लेकिन कांडा के समर्थन में प्रत्याशी का नाम वापस ले लिया गया। कांडा को इनेलो का भी समर्थन था, फिर भी सेतिया ने यह सीट जीती। यह जीत उनकी मेहनत और स्थानीय प्रभाव को दर्शाती है।
राजनीतिक भविष्य की अटकलें
गोकुल सेतिया का यह बगावती रुख कई सवाल खड़े करता है। क्या वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होंगे? या यह हाईकमान पर दबाव बनाने की रणनीति है? सिरसा में उनकी जीत और स्थानीय प्रभाव उन्हें एक मजबूत नेता बनाते हैं, लेकिन हाईकमान की अनदेखी उनके धैर्य की परीक्षा ले रही है।
स्थानीय नेताओं की आवाज़
अगर आप सिरसा या हरियाणा के निवासी हैं, तो इस राजनीतिक घटनाक्रम पर ध्यान दें। गोकुल सेतिया जैसे स्थानीय नेताओं के मुद्दों को समझें और उनकी समस्याओं को अपने जनप्रतिनिधियों तक पहुंचाएं। यह घटनाक्रम हरियाणा की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है।
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