News India Live, Digital Desk: Old Dispute Flared up again : पड़ोसी देश नेपाल ने एक बार फिर भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से होने वाले व्यापार और तीर्थयात्रा मार्ग को लेकर अपनी पुरानी आपत्ति को दोहराया है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का मुद्दा फिर से गरमा गया है। नेपाल की नई सरकार ने स्पष्ट किया है कि चूंकि यह इलाका विवादित है, इसलिए यहां कोई भी व्यापारिक गतिविधि उसकी सहमति के बिना नहीं होनी चाहिए।क्या है नेपाल की आपत्ति?नेपाल के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रेखा शर्मा ने हाल ही में एक बयान में कहा कि भारत और चीन को लिपुलेख में व्यापार मार्ग स्थापित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। उनका तर्क है कि यह 2015 में हुए उस समझौते का उल्लंघन है, जब नेपाल ने दोनों देशों द्वारा इस मार्ग को खोलने पर अपनी राजनयिक आपत्ति दर्ज कराई थी।नेपाल का मुख्य दावा उत्तराखंड के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा क्षेत्रों पर है। नेपाल इन्हें अपने नक्शे में दार्चुला जिले का हिस्सा बताता है, जबकि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से भारत के नियंत्रण में रहा है और भारत इसे अपने पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा मानता है।इस विवाद की जड़ें कहां हैं?यह विवाद 1816 की सुगौली संधि की अलग-अलग व्याख्याओं से उपजा है। इस संधि के मुताबिक, काली नदी (जिसे महाकाली भी कहा जाता है) नेपाल की पश्चिमी सीमा तय करती है।नेपाल का तर्क: नेपाल का मानना है कि नदी का उद्गम लिंपियाधुरा के पास है, इसलिए नदी के पूर्व का पूरा इलाका (जिसमें कालापानी और लिपुलेख भी शामिल हैं) उसका है।भारत का तर्क: भारत का मानना है कि काली नदी का उद्गम कालापानी के पास स्थित झरनों से होता है, और संधि में जिस नदी का जिक्र है, वह यही है। इसलिए, यह पूरा क्षेत्र भारत की सीमा के भीतर आता है।यह विवाद तब और बढ़ गया जब 2020 में भारत ने लिपुलेख दर्रे तक जाने वाली एक रणनीतिक सड़क का उद्घाटन किया, जो कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए एक छोटा रास्ता मुहैया कराती है। इसके जवाब में, नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी कर दिया, जिसमें इन तीनों क्षेत्रों को अपने हिस्से के रूप में दिखाया गया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था।अब क्यों उठा यह मुद्दा?नेपाल में हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' की सरकार बनी है। माना जा रहा है कि नई सरकार राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर मुखर होकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। लिपुलेख का मुद्दा नेपाल में एक संवेदनशील और राष्ट्रीय भावना से जुड़ा विषय है, जिसे उठाकर सरकार घरेलू राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।हालांकि, नेपाल ने यह भी साफ किया है कि वह इस मुद्दे को सैन्य तरीकों से नहीं, बल्कि बातचीत और कूटनीति के जरिए सुलझाना चाहता है।अब देखना यह होगा कि भारत और चीन इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। यह मुद्दा भारत-नेपाल संबंधों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे सुलझाने के लिए तीनों पक्षों की ओर से संयम और आपसी समझ की जरूरत होगी।
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