वॉशिंगटन: भारत और अमेरिका आज स्ट्रैटजिक पार्टनर्स है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। एक वक्त दोनों देशों के बीच हालात इस मोड़ पर पहुंच गये थे कि अमेरिका ने भारत पर हमला करने की प्लानिंग की थी। इस दौरान एक प्रमुख अमेरिकी हथियार कंपनी ने भारत पर एक बड़े हमले की योजना बनाई थी। अमेरिका के महाविनाशक B-52 बॉम्बर्स और पनडुब्बियों को तैनात कर दिया गया था। हमले की ये प्लानिंग साल 1991 में की गई थी और दिखाया गया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दा एकदम चरम पर पहुंच गया है और दोनों परमाणु संपन्न देश एक भीषण युद्ध में फंस सकते हैं। इस दौरान आशंका थी की दोनों देश सतह से सतह पर मार करने वाली परमाणु मिसाइलों का इस्तेमाल कर सकते हैं। दोनों देशों की नौसेनाएं भी संघर्ष के लिए तैयार थीं और उन्होंने समुद्र में अपने अपने पॉजिशन तय कर लिए थे।यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस प्लानिंग में भारत ने चेतावनी दे रखी थी अगर किसी भी देश की नौसेना उसके 600 समु्द्री मील के अंदर दाखिल करने की दुस्साहस करेगी, तो उसपर भीषण हमले किए जाएंगे। यह घटना तब हुई जब शीत युद्ध 1991 में सोविएत संघ के विघटन के साथ खत्म हो गया था। नई विश्व व्यवस्था के लिए खतरा सोवियत संघ से नहीं, बल्कि दुनिया भर में उभरते नए शक्ति केंद्रों से था। भारत और पाकिस्तान अगर परमाणु युद्ध में फंसते तो एशिया का तबाह होना तय था। ऐसे समय में अमेरिका ने दोनों पड़ोसी परमाणु संपन्न देशों को एक बड़े युद्ध में फंसने से बचाने का बीड़ा उठाया था। पाकिस्तान पर हमला करने वाला था भारत!यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान वाइट हाउस में इस बात पर विचार चल रहा था कि पाकिस्तान पर होने वाले भारतीय हमले को कैसे रोका जाए। अमेरिकी जनरलों की राय थी कि पाकिस्तान पर हमला करने के लिए भारत अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों का इस्तेमाल करेगा और भारत के निशाने पर पाकिस्तान के परमाणु स्थल होंगे। लिहाजा, अमेरिका ने भारत की योजनाओं को नाकाम करने की योजना बनाई। अमेरिका के शीर्ष जनरलों का मानना था कि इस युद्ध का विनाशक असर पूरी दुनिया पर होगा, क्योंकि भारत, दुनिया के कुछ सबसे व्यस्त समुद्री संचार मार्ग को कंट्रोल करता है। इसलिए अमेरिकी सरकार ने नई दिल्ली को रोकने के लिए अपने दो एयरक्राफ्ट कैरियर ग्रुप और दो परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियों को हिंद महासागर में भेज दिया। इस दौरान अमेरिकी बेड़े ने मुंबई के दक्षिण-पश्चिम में भारतीय समुद्री क्षेत्र का उल्लंघन किया। जिसके जवाब में भारतीय नौसेना ने अमेरिकी पनडुब्बियों और एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर नकली हमले शुरू कर दिए। भारत ने इस दौरान कहा कि अगर अमेरिकी सेना पीछे नहीं हटी तो भारत असली हमले शुरू कर देगा। जिसके बाद अमेरिका ने "शांतिपूर्ण ट्रांजिट" के अपने अधिकार का दावा किया और डिएगो गार्सिया में अपने बी-52 बेड़े को हाई अलर्ट पर कर दिया। इस दौरान अमेरिका ने अपने बी-52 बॉम्बर्स को भारत के अग्नि और पृथ्वी मिसाइल स्थल, वीरभू पनडुब्बी बेस, वेंडुरुथी नौसेना वायु स्टेशन, गोला-बारूद भंडारण सुविधाएं, हैंगर और एक बिजली संयंत्र पर हमला करने का मैप दिया। अमेरिकी हमले का मकसद भारतीय हथियारों, सेंसर और जमीनी संपत्तियों को नष्ट करना था, जो उसके एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर हमला करने वाले थे। इस दौरान अमेरिकी बी-52 बमवर्षक, हमलावर पनडुब्बियों और नौसैनिक विध्वंसक विमानों ने भारत पर कुल 190 मिसाइलें दागीं। इस हमले ने भारत की कमान और नियंत्रण प्रणाली को निष्क्रिय कर दिया, जिससे नई दिल्ली की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता कम हो गई। भारतीय नौसेना लगातार गोलाबारी की चपेट में थी और उसके विमान काम नहीं कर पा रहे थे। अमेरिका के पास रिजर्व में थीं मिसाइलें इन सबके बाद भी अमेरिका के पास 117 मिसाइलें रिजर्व में थीं। ताकि अगर भारत फिर भी जवाबी कार्रवाई करे तो उससे बचा जा सके। यह सिमुलेशन 1991 में वाशिंगटन में अमेरिकी जनरल्स के सामने जनरल डायनेमिक्स की पेशकश का हिस्सा था। अमेरिकी हथियार निर्माता पेंटागन के सामने ‘अगली पीढ़ी की क्रूज मिसाइलों’ के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहा था। मिसाइल की रेंज टॉमहॉक से तीन गुना ज्यादा थी, जिसे उसी कंपनी ने मैकडॉनेल डगलस कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर विकसित किया था। जबकि आज चीन को रोकने के लिए अमेरिका को भारत का साथ चाहिए। लेकिन 1991 में नई दिल्ली को अमेरिका एक दुश्मन देश के तौर पर देखता था। भारत के पास सोवियत संघ से मिले परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बी, INS चक्र को पट्टे पर लेने और भारतीय नौसेना द्वारा हिंद महासागर पर अपना दबदबा बनाने के इरादे ने अमेरिका को नाराज कर दिया। लिहाजा अमेरिका, पाकिस्तान के साथ था और उसने अपनी युद्ध स्ट्रैटजी में भारत पर हमला करने की योजना बनाई थी।
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