रणदीप हुड्डा ने अपने डायरेक्शन की शुरुआत साल 2024 में आई बायोपिक फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' से की। उन्होंने बताया कि डायरेक्शन उनकी पहली पसंद नहीं थी लेकिन जब उन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा तो उन्हें पता चला कि उनके पास इसे लेकर गहरी समझ और स्वाभाविक प्रतिभा है।
निर्देशन में हाथ आजमाने की प्रेरणा के बारे में रणदीप हुड्डा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, 'कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं, कुछ लोग महान बन जाते हैं, और कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है। इसी तरह निर्देशन भी मुझ पर थोपा गया था।'
निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने इतनी जल्दी नहीं सोचा था
'सरबजीत' फेम एक्टर ने बताया कि निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने इतनी जल्दी नहीं सोचा था। रणदीप ने कहा, 'डायरेक्शन मैंने सोचा नहीं था कि करूंगा लेकिन जब मैंने इसे किया तो पता चला कि ये काम मुझे अच्छी तरह से आता है। मेरे अंदर स्क्रिप्ट और फिल्म बनाने की समझ पहले से थी जो मैंने एक्टिंग करते हुए सीखी थी।
'मैं अपनी हर फिल्म में एक बढ़िया असिस्टेंट डायरेक्टर बन जाता हूं'
एक्टर को लगता है कि वो एक शानदार असिस्टेंट डायरेक्टर हैं। रणदीप का कहना है, 'मैं अपनी हर फिल्म में एक बढ़िया असिस्टेंट डायरेक्टर बन जाता हूं। मतलब कि मैं अपनी हर फिल्म में सब चीजों पर ध्यान रखता था, जो कि एक असिस्टेंट डायरेक्टर करता है। भले ही ये मेरा काम नहीं है, लेकिन मुझे हर चीज की जानकारी रहती है। मेरी यही जागरुकता मेरे निर्देशन में बहुत काम आई थी। उन्होंने कहा कि अब जब डायरेक्शन का अनुभव ले लिया है तो आगे भी ऐसा जरूर करेंगे।'
इस फिल्म में सावरकर की मुख्य भूमिका भी निभाई
बता दें कि 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' फिल्म विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म के रणदीप हुड्डा ने केवल डायरेक्शन ही नहीं बल्कि को-राइटिंग और को-प्रड्यूस भी किया है। साथ ही उन्होंने इस फिल्म में सावरकर की मुख्य भूमिका भी निभाई है। फिल्म में सावरकर के जीवन की महत्वपूर्ण घटना को काफी विस्तार से दिखाया गया है।
'तो फिर चीजें बोरिंग हो जाती हैं, आपके लिए भी और दर्शकों के लिए भी'
रणदीप हुड्डा से जब पूछा गया कि अब तक का उनका सबसे बड़ा क्रिएटिव रिस्क क्या रहा है? उन्होंने कहा, 'अगर आप क्रिएटिविटी करते हैं, तो रिस्क तो फिर होगा। लेकिन जब आप कोई चीज दिल से बनाते हैं तो आप खुद को सबके सामने खोल देते हैं और वो एक नाज़ुक स्थिति होती है। जैसे जिंदगी में हमें कभी पूरा भरोसा नहीं होता कि चीजें कैसी बन रही हैं, वैसे ही कला में भी नहीं होता और मुझे लगता है कि यही सबसे बड़ा रिस्क है। अगर आप ऐसे मौके नहीं लेते और अपने पुराने काम से आगे नहीं बढ़ते, तो फिर चीजें बोरिंग हो जाती हैं, आपके लिए भी और दर्शकों के लिए भी।'
निर्देशन में हाथ आजमाने की प्रेरणा के बारे में रणदीप हुड्डा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, 'कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं, कुछ लोग महान बन जाते हैं, और कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है। इसी तरह निर्देशन भी मुझ पर थोपा गया था।'
निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने इतनी जल्दी नहीं सोचा था
'सरबजीत' फेम एक्टर ने बताया कि निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने इतनी जल्दी नहीं सोचा था। रणदीप ने कहा, 'डायरेक्शन मैंने सोचा नहीं था कि करूंगा लेकिन जब मैंने इसे किया तो पता चला कि ये काम मुझे अच्छी तरह से आता है। मेरे अंदर स्क्रिप्ट और फिल्म बनाने की समझ पहले से थी जो मैंने एक्टिंग करते हुए सीखी थी।
'मैं अपनी हर फिल्म में एक बढ़िया असिस्टेंट डायरेक्टर बन जाता हूं'
एक्टर को लगता है कि वो एक शानदार असिस्टेंट डायरेक्टर हैं। रणदीप का कहना है, 'मैं अपनी हर फिल्म में एक बढ़िया असिस्टेंट डायरेक्टर बन जाता हूं। मतलब कि मैं अपनी हर फिल्म में सब चीजों पर ध्यान रखता था, जो कि एक असिस्टेंट डायरेक्टर करता है। भले ही ये मेरा काम नहीं है, लेकिन मुझे हर चीज की जानकारी रहती है। मेरी यही जागरुकता मेरे निर्देशन में बहुत काम आई थी। उन्होंने कहा कि अब जब डायरेक्शन का अनुभव ले लिया है तो आगे भी ऐसा जरूर करेंगे।'
इस फिल्म में सावरकर की मुख्य भूमिका भी निभाई
बता दें कि 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' फिल्म विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म के रणदीप हुड्डा ने केवल डायरेक्शन ही नहीं बल्कि को-राइटिंग और को-प्रड्यूस भी किया है। साथ ही उन्होंने इस फिल्म में सावरकर की मुख्य भूमिका भी निभाई है। फिल्म में सावरकर के जीवन की महत्वपूर्ण घटना को काफी विस्तार से दिखाया गया है।
'तो फिर चीजें बोरिंग हो जाती हैं, आपके लिए भी और दर्शकों के लिए भी'
रणदीप हुड्डा से जब पूछा गया कि अब तक का उनका सबसे बड़ा क्रिएटिव रिस्क क्या रहा है? उन्होंने कहा, 'अगर आप क्रिएटिविटी करते हैं, तो रिस्क तो फिर होगा। लेकिन जब आप कोई चीज दिल से बनाते हैं तो आप खुद को सबके सामने खोल देते हैं और वो एक नाज़ुक स्थिति होती है। जैसे जिंदगी में हमें कभी पूरा भरोसा नहीं होता कि चीजें कैसी बन रही हैं, वैसे ही कला में भी नहीं होता और मुझे लगता है कि यही सबसे बड़ा रिस्क है। अगर आप ऐसे मौके नहीं लेते और अपने पुराने काम से आगे नहीं बढ़ते, तो फिर चीजें बोरिंग हो जाती हैं, आपके लिए भी और दर्शकों के लिए भी।'
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