पटना: पहले चुनावी हिंसा के लिए बहुत बदनाम रहे बिहार में मौजूदा विधानसभा चुनाव के दौरान सब कुछ शांति से निपटने की आशा की जा रही थी, लेकिन गुरुवार को मोकामा में जन सुराज पार्टी के एक समर्थक की हत्या हो गई। बिहार में पहले चुनाव के दौरान हत्याएं, अपहरण और बूथ कैप्चरिंग आम बात थी, लेकिन 2005 से राज्य में चुनावी हिंसा थम गई। बिहार में हिंसा की घटनाओं का काला इतिहास है, जो उस दौर की सरकारों की नाकामियों का गवाह है।   
   
बिहार में राजनीतिक हत्याओं का लंबा इतिहास है। राजनीतिक हिंसा और हत्या के दौर में बिहार में कई नेताओं की जान गई। इसके अलावा देश में सबसे पहले बूथ कैप्चरिंग,यानी बूथ लूट की घटना भी बिहार के बेगूसराय में हुई थी। राज्य में 80 के दशक से चुनावी हिंसा और बूथों को लूटने की घटनाएं बढ़ती गईं। जो भी पार्टी सत्ता में होती थी, उसके संरक्षण में बूथ लूटे जाते थे। इसका विरोध करने पर हिंसा होती थी।
     
सन 1965 से 1998 के बीच कई विधायकों की हत्याबिहार में सन 1965 में पहली राजनीतिक हत्या दक्षिण गया से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक शक्ति कुमार की हुई थी। हत्या के बाद उनका शव तक नहीं मिला था। इसके बाद सन 1972 में सीपीआई के विधायक मंजूर हसन की हत्या उनके घर में कर दी गई थी. सन 1978 में सीपीआई के ही सीताराम मीर को मौत के घाट उतार दिया गया था। सन 1984 में कांग्रेस के नगीना सिंह की हत्या की गई थी। सन 1990 के जुलाई माह में जनता दल के विधायक अशोक सिंह को उनके घर पर ही मार दिया गया था।
     
सन 1998 में दो विधायकों देवेंद्र दुबे और बृज बिहारी प्रसाद की हत्याएं हुई थीं। सीपीएम के विधायक अजीत सरकार की भी दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। केंद्रीय एजेंसी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2019 में 62 राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हुई थीं जिनमें छह लोगों की मौत हुई थी।
   
साल 1969 में हिंसा की घटनाएं बढ़ीं बिहार में पहले चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं ही होती थीं। लेकिन 1969 के चुनाव में पहली बार पूरे बिहार में हिंसा की कई जगह घटनाएं हुईं थीं। इनमें सात लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद हिंसा की घटनाएं बढ़ती गईं। सन 1977 में चुनावी हिंसी की 194 घटनाएं हुई थीं, जिनमें 26 लोगों की मौत हुई थी।
   
सन 1985 में चुनाव में हिंसा की सबसे ज्यादा 1370 घटनाएं हुई थीं जिनमें 69 लोग मारे गए थे। मतदान के दिनों में ही 310 घटनाएं हुई थीं और 49 लोगों की मौत हुई थी। बूथ कैप्चरिंग की भी कई घटनाएं हुई थीं। सन 1990 के चुनाव में हिंसा की 520 घटनाएं हुई थीं और 87 लोगों की मौत हुई थी। इसी चुनाव के बाद लालू यादव सत्तासीन हुए थे। सन 1995 में चुनावी हिंसा की 1270 घटनाओं में 54 लोगों की मौत हुई थी। साल 2000 के चुनाव में 61 लोग मारे गए थे।
   
सन 2005 से आया बदलावसन 2005 के चुनाव में भी हिंसा की कई घटनाएं हुई और पांच लोगों की मौत हुई। इसी साल राष्ट्रपति शासन के बाद बिहार में अक्टूबर 2005 के हुए चुनाव में हुई हिसा का घटनाओं में 17 लोगों की मौत हुई थी। इस चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार को जनादेश मिला था। इसके बाद बिहार में चुनावी हिंसा में कमी आती गई। साल 2010 के चुनाव में पांच लोगों की मौत हुई थी।
  
बिहार में राजनीतिक हत्याओं का लंबा इतिहास है। राजनीतिक हिंसा और हत्या के दौर में बिहार में कई नेताओं की जान गई। इसके अलावा देश में सबसे पहले बूथ कैप्चरिंग,यानी बूथ लूट की घटना भी बिहार के बेगूसराय में हुई थी। राज्य में 80 के दशक से चुनावी हिंसा और बूथों को लूटने की घटनाएं बढ़ती गईं। जो भी पार्टी सत्ता में होती थी, उसके संरक्षण में बूथ लूटे जाते थे। इसका विरोध करने पर हिंसा होती थी।
सन 1965 से 1998 के बीच कई विधायकों की हत्याबिहार में सन 1965 में पहली राजनीतिक हत्या दक्षिण गया से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक शक्ति कुमार की हुई थी। हत्या के बाद उनका शव तक नहीं मिला था। इसके बाद सन 1972 में सीपीआई के विधायक मंजूर हसन की हत्या उनके घर में कर दी गई थी. सन 1978 में सीपीआई के ही सीताराम मीर को मौत के घाट उतार दिया गया था। सन 1984 में कांग्रेस के नगीना सिंह की हत्या की गई थी। सन 1990 के जुलाई माह में जनता दल के विधायक अशोक सिंह को उनके घर पर ही मार दिया गया था।
सन 1998 में दो विधायकों देवेंद्र दुबे और बृज बिहारी प्रसाद की हत्याएं हुई थीं। सीपीएम के विधायक अजीत सरकार की भी दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। केंद्रीय एजेंसी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 2019 में 62 राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हुई थीं जिनमें छह लोगों की मौत हुई थी।
साल 1969 में हिंसा की घटनाएं बढ़ीं बिहार में पहले चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं ही होती थीं। लेकिन 1969 के चुनाव में पहली बार पूरे बिहार में हिंसा की कई जगह घटनाएं हुईं थीं। इनमें सात लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद हिंसा की घटनाएं बढ़ती गईं। सन 1977 में चुनावी हिंसी की 194 घटनाएं हुई थीं, जिनमें 26 लोगों की मौत हुई थी।
सन 1985 में चुनाव में हिंसा की सबसे ज्यादा 1370 घटनाएं हुई थीं जिनमें 69 लोग मारे गए थे। मतदान के दिनों में ही 310 घटनाएं हुई थीं और 49 लोगों की मौत हुई थी। बूथ कैप्चरिंग की भी कई घटनाएं हुई थीं। सन 1990 के चुनाव में हिंसा की 520 घटनाएं हुई थीं और 87 लोगों की मौत हुई थी। इसी चुनाव के बाद लालू यादव सत्तासीन हुए थे। सन 1995 में चुनावी हिंसा की 1270 घटनाओं में 54 लोगों की मौत हुई थी। साल 2000 के चुनाव में 61 लोग मारे गए थे।
सन 2005 से आया बदलावसन 2005 के चुनाव में भी हिंसा की कई घटनाएं हुई और पांच लोगों की मौत हुई। इसी साल राष्ट्रपति शासन के बाद बिहार में अक्टूबर 2005 के हुए चुनाव में हुई हिसा का घटनाओं में 17 लोगों की मौत हुई थी। इस चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार को जनादेश मिला था। इसके बाद बिहार में चुनावी हिंसा में कमी आती गई। साल 2010 के चुनाव में पांच लोगों की मौत हुई थी।
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