नई दिल्ली: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आकाश एयर डिफेंस सिस्टम के जरिये पाकिस्तान के हर वार को नाकाम कर दिया। देश में ही बना आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम अब सफल हो गया है। इसने पाकिस्तान से लगी पश्चिमी सीमा पर अपनी पहली असली परीक्षा पास कर ली है। यह बात DRDO के उस समय के प्रोजेक्ट डायरेक्टर प्रहलाद रामाराव ने गर्व से कही है। उन्होंने बताया कि इस सिस्टम को बनाने में 15 साल लगे। इसमें देश भर की कई डिफेंस लैब के हजारों वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया। पाकिस्तान के हमलों को नाकाम कर दियारामाराव ने बताया कि 8 और 9 मई की रात को पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए थे। आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने उन हमलों को नाकाम कर दिया। इससे इसकी ताकत साबित हो गई। भारतीय वायुसेना के GMO एयर मार्शल ए.के. भारती ने भी कहा कि भारत के डिफेंस सिस्टम, जैसे आकाश और S400 ट्रायम्फ, एक दीवार की तरह खड़े रहे और दुश्मनों को अंदर आने से रोक दिया। मेरी आंखों में आंसू आ गए...रामारावआकाश की इस सफलता पर रामाराव बहुत खुश हैं। उन्होंने TOI को बताया, "जब मेरे बच्चे (आकाश मिसाइल) ने इतना अच्छा काम किया तो मेरी आंखों में आंसू आ गए। यह मेरी जिंदगी का सबसे खुशी का दिन है। यह पद्म पुरस्कार से भी बड़ा है।" रामाराव को पद्म श्री भी मिल चुका है। रामाराव को कलाम ने चुना थारामाराव को 'मिसाइल मैन' डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने चुना था। कलाम ने उन्हें 35 साल की उम्र में ही आकाश प्रोग्राम का हेड बना दिया था। उस समय कलाम DRDO की डिफेंस रिसर्च लेबोरेटरी (DRL) में हेड थे। बाद में वे डिफेंस मिनिस्टर के साइंटिफिक एडवाइजर और फिर भारत के राष्ट्रपति बने। रामाराव ने कलाम के बारे में कहा, "एक लीडर टीम भावना लाता है और सभी को एक लक्ष्य की ओर काम करने के लिए प्रेरित करता है। कलाम सही मायने में एक लीडर थे। देश को अब 10 अब्दुल कलामों की जरूरत है ताकि वे अलग-अलग फील्ड में तरक्की कर सकें, जैसे एयरोस्पेस और डिफेंस सेक्टर ने उनके नेतृत्व में तरक्की की।"आकाश मिसाइल की पहले कई बार टेस्टिंग हो चुकी थी। आर्मी और IAF ने भी इसका इस्तेमाल करके देखा था। लेकिन यह पहली बार था जब इसने असली लड़ाई में काम किया। पाकिस्तान ने भारत पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया था। भारतीय सेना और IAF ने इस मिसाइल सिस्टम को पश्चिमी सीमा पर तैनात किया है। आकाश मिसाइल हवा में मौजूद दुश्मनों को मार गिराने में सक्षम है। यह फाइटर जेट, क्रूज मिसाइल, हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइल और ड्रोन को भी मार सकता है। यह सिस्टम एक साथ कई लक्ष्यों पर निशाना साध सकता है। इस प्रोजेक्ट पर 1994 में काम शुरू हुआ थारामाराव ने बताया, "हमने इस प्रोजेक्ट पर 1994 में काम करना शुरू किया था। उस समय इसका बजट 300 करोड़ रुपये था। जब आप कुछ नया बनाते हैं, तो आप कई बार फेल होते हैं। हम भी फेल हुए। लेकिन हमने अपनी गलतियों से सीखा।राजेंद्रा नाम का एक रडार बनाना सबसे मुश्किल था। यह एक खास तरह का रडार है जो एक साथ कई काम कर सकता है। लेकिन हमने कई कोशिशों के बाद इसे बना लिया। बाद में प्रोजेक्ट का बजट बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया।"रामाराव ने आगे कहा, "मैं आपको गारंटी देता हूं कि दुनिया में कहीं भी सिर्फ 500 करोड़ रुपये में मिसाइल डिफेंस सिस्टम नहीं बन सकता। हमारा आकाश सबसे सस्ता लेकिन सबसे अच्छा मिसाइल शील्ड है। यह 70 किलोमीटर दूर से ही दुश्मन की मिसाइल को पहचान सकता है और 30 किलोमीटर की दूरी पर उसे मार सकता है।" रामाराव अब 78 साल के हैं।आकाश मिसाइल को 2009 में बनाया गया था। इसके बाद इसमें लगातार सुधार किया गया है। अब इसके कई अलग-अलग वर्जन हैं। हर वर्जन में कुछ नई खूबियां हैं। ये अलग-अलग जरूरतों को पूरा करते हैं। इनमें मार्क-I, आकाश-1S (जिसमें देश में बना सीकर लगा है), आकाश प्राइम (जो ऊंचाई वाले इलाकों और ठंडे मौसम में काम कर सकता है) और आकाश-NG (जिसकी रेंज बहुत ज्यादा है और जिसमें कई नई चीजें हैं) शामिल हैं।
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