नई दिल्ली: हाई कोर्ट का जज बनने की प्रक्रिया मुश्किल हो गई है। तीन दशकों तक जब हाई कोर्ट कॉलेजियम किसी वकील का नाम भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कॉलेजियम को भेजा जाता था, तो लगभग तय होता था कि वह वकील हाई कोर्ट का जज बन जाएगा। उस समय सफलता की दर 85-90% थी। लेकिन अब यह प्रक्रिया कहीं अधिक कठिन हो गई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की गहन जांच और इंटरव्यू के बाद मुश्किल से 50 फीसदी से भी कम उम्मीदवारों का सिलेक्शन हो पा रहा है। पहले आसान थी बैकग्राउंड जांचपहले, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम वकीलों के बैकग्राउंड जांच में उदार रवैया अपनाता था। खासकर यह देखा जाता था कि उन्होंने कितने महत्वपूर्ण केस लड़े हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की रिपोर्ट में जानने की कोशिश होती थी कि उनकी समाज में कितना मान-सम्मान है। हाई कोर्ट कॉलेजियम जिनकी सिफारिश करता था उनमें मुश्किल से 10-15 फीसदी को छोड़कर सबका सिलेक्शन हो जाता था। आईबी की निगेटिव रिपोर्ट की वजह से सिर्फ 10-15 फीसदी वकीलों का चुनाव नहीं हो पाता था। आईबी रिपोर्ट में रिकमंडेड वकील की आमदनी, कोर्ट में प्रैक्टिस देखी जाती थी। कम आमदनी का मतलब होता था कि उक्त वकील की प्रैक्टिस बढ़िया नहीं चल रही है।जांच की प्रक्रिया इतनी आसान थी कि एक बार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक तत्कालीन सीजेआई की बहन को हाई कोर्ट का जज बनाने की मंजूरी दे दी थी, जबकि उनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये से भी कम थी। उनकी नियुक्ति ने उन्हें जज की पेंशन सुनिश्चित कर दी थी। नए सीजेआई ने बदल दी प्रक्रियामुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने के एक महीने बाद जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के साथ मिलकर तय किया कि हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए उम्मीदवारों का पर्सनल इंटरव्यू होगा, ताकि उनकी न्यायिक सोच और संवैधानिक न्यायालय के लिए उपयुक्तता को समझा जा सके। क्यों जरूरी था नया सिस्टमयह कदम जरूरी था, भले ही यह हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया का औपचारिक हिस्सा न हो, जो सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के दशक के दो ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से निर्धारित की थी। इसका कारण था कुछ जजों द्वारा सार्वजनिक मंचों पर दिए गए विवादास्पद बयान, कुछ हाई कोर्ट के जजों द्वारा दिए गए चौंकाने वाले निर्णय, और भ्रष्टाचार के आरोप। सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर उन बयानों और फैसलों पर प्रतिक्रिया देनी पड़ी, जिनमें 'बलात्कार का प्रयास' जैसे मामलों की गलत व्याख्या की गई थी। 101 में सिर्फ 49 ही बन पाए HC जज अदालतों के लिए जज बनने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों के साथ यह संवाद/इंटरव्यू करने से सफलता दर घटकर हाल के महीनों में 50% से नीचे आ गई है। 12 हाई कोर्ट्स- आंध्र प्रदेश, इलाहाबाद, बॉम्बे, कोलकाता, दिल्ली, गुजरात, मणिपुर, ओडिशा, पटना, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तराखंड- के कॉलेजियम ने कुल 101 नामों की सिफारिश की थी। लेकिन सीजेआई खन्ना, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत की कमेटी ने धैर्यपूर्वक सभी उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया और अंततः केवल 49 को ही हाई कोर्ट जज पद के लिए उपयुक्त पाया, जो कि कुल सिफारिशों का 50% से भी कम है।
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