लेखक: रहीस सिंह
'गुड ब्यूटीफुल मॉर्निंग, लंदन! मार्क का हिस्टोरिक मोमेंट।' ये शब्द थे फिलिस्तीन के राजदूत हुसाम जोमलॉट के और मौका था ब्रिटेन का फिलिस्तीनी मिशन को दूतावास के रूप में मान्यता देना। जोमलॉट ने जैसे ही फिलिस्तीन का झंडा फहराया, भीड़ से आवाज आई, ‘इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं… फिलिस्तीन जिंदाबाद!’ ये ध्वनियां फिलिस्तीन के लोगों की भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो आजादी चाहते हैं।
पुरानी स्थिति: फिलिस्तीन ने यहां तक पहुंचने के लिए लंबा संघर्ष किया है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इस रास्ते में वह बना कम और मिटा ज्यादा। ऐसे में हाल के दिनों में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, पुर्तगाल, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देना उम्मीद तो जगाता है, लेकिन कई सवाल भी हैं। वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर-सदस्यीय पर्यवेक्षक का दर्जा दिया था। उस समय 193 में से 138 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया। लेकिन क्या फलस्तीन की स्थिति बदली? अमेरिका ने तब भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहकर इस्राइल का समर्थन किया था और अब भी वह उसके साथ है।
इजरायल का इनकार: सवाल है कि फलस्तीन को मान्यता देने वाले देश इसे केवल प्रतीक तक सीमित रखेंगे या फिर इस्राइल और अमेरिका को चुनौती देते हुए इस पर अमल भी कराएंगे? फलस्तीन को मान्यता देने के पीछे का सच क्या है, क्या इजरायल का अतिवाद एक कारण है और अरब देश इसे कैसे देख रहे हैं? इजरायल कभी ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ को स्वीकार नहीं करेगा। उसके पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने मान्यता को ‘बेतुका’ और ‘आतंकवाद को इनाम’ बताया है। इजरायली राष्ट्रपति इसाक हर्जोग भी कह रहे हैं कि यह कदम 'फोर्सेज ऑफ डार्कनेस' को बढ़ावा देने वाला है, यानी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने वाला। जाहिर है, फलस्तीन को मान्यता देने वाले देश आतंकवाद को बढ़ावा देना नहीं चाहते।
कतर अटैक का असर: इजरायल की कार्रवाई पर नजर डालें तो हमास खत्म हो रहा है, लेकिन गाजा के आम लोग भी इसकी कीमत चुका रहे हैं। इससे इनकार नहीं कि इसके लिए हमास जिम्मेदार है, पर इजरायल की भी जवाबदेही बनती है। नेतन्याहू ने कहा है कि ‘जब तक जरूरी होगा, बम गिराएंगे’। हमास के अक्टूबर 2023 वाले हमले को देखते हुए यह बात बहुत गलत भी नहीं लगती, पर दुनिया अंतहीन युद्ध नहीं चाहती। इजरायल ने जिस तरह कतर पर हमला किया, वह पूरी दुनिया को अखरा। संभव है, इसके बाद ये देश इस निष्कर्ष पर पहुंचे हों कि इजरायल को रोकना जरूरी है और इसके लिए फिलिस्तीन को मान्यता देना भी आवश्यक है।
गाजा पर प्लान: इजरायल का मकसद गाजा के लोगों पर पूरा नियंत्रण रखना है। उसके रक्षा मंत्री ने गाजा के लोगों के लिए एक योजना पेश की थी, जिसके तहत दक्षिणी राफाह के खंडहरों पर नया शहर बसाया जाएगा। शुरू में यहां 6 लाख बेघर फिलिस्तीनियों और बाद में 20 लाख को बसाने की योजना है। कागज पर इसका संचालन अंतरराष्ट्रीय संगठनों के हाथों में होगा, लेकिन वास्तविक नियंत्रण इजरायली सेना (IDF) के पास रहेगा।
कानून के खिलाफ: योजना के विरोध में 16 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कानूनविदों ने पत्र लिखा है। उनका कहना है कि यह योजना गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों की श्रेणी में आ सकती है, मसलन - युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और कुछ स्थितियों में नस्लीय विनाश। यह अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। लेकिन, मुश्किल है कि ये कानून इजरायल को रोक पाएं, इसलिए फिलिस्तीन को मान्यता देना जरूरी है।
युवाओं का दबाव: ये देश केवल मानवीय कारणों से फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए प्रेरित नहीं हुए। मसलन कहा जा रहा है कि फ्रांस ने अपने देश के मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए मान्यता दी। लेकिन असल तस्वीर इससे कहीं गहरी है। दुनिया के कई विश्लेषक उस वर्ग को नजरअंदाज कर रहे हैं जो सबसे बड़ा डेमोग्राफिक समूह है यानी Gen Z। युवाओं का दबाव कई यूरोपीय सरकारों पर दिख रहा है। इटली में हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर हिंसक विरोध किया, क्योंकि प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है।
मुश्किल राह: फिलहाल अरब देशों की दिशा तय नहीं दिख रही है और मान्यता देने वाले देश प्रतीकात्मक स्वतंत्रता के साथ खड़े हैं। ऐसे में देखना है कि फिलिस्तीनी-ब्रिटिश शेफ और Palestine on a Plate: Memories from My Mother's Kitchen की लेखिका Joudie Kalla के ये शब्द सार्थकता के फलक पर अपना झंडा फहरा पाते हैं या नहीं, ‘हम यह बताना चाहते हैं कि हम अपने अधिकारों, अपनी स्वतंत्रता और अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ रहे हैं और अपने घर वापस जाने में सक्षम हैं।' फिलहाल राह इतनी आसान नहीं है।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)
'गुड ब्यूटीफुल मॉर्निंग, लंदन! मार्क का हिस्टोरिक मोमेंट।' ये शब्द थे फिलिस्तीन के राजदूत हुसाम जोमलॉट के और मौका था ब्रिटेन का फिलिस्तीनी मिशन को दूतावास के रूप में मान्यता देना। जोमलॉट ने जैसे ही फिलिस्तीन का झंडा फहराया, भीड़ से आवाज आई, ‘इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं… फिलिस्तीन जिंदाबाद!’ ये ध्वनियां फिलिस्तीन के लोगों की भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो आजादी चाहते हैं।
पुरानी स्थिति: फिलिस्तीन ने यहां तक पहुंचने के लिए लंबा संघर्ष किया है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इस रास्ते में वह बना कम और मिटा ज्यादा। ऐसे में हाल के दिनों में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, पुर्तगाल, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देना उम्मीद तो जगाता है, लेकिन कई सवाल भी हैं। वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर-सदस्यीय पर्यवेक्षक का दर्जा दिया था। उस समय 193 में से 138 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया। लेकिन क्या फलस्तीन की स्थिति बदली? अमेरिका ने तब भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहकर इस्राइल का समर्थन किया था और अब भी वह उसके साथ है।
इजरायल का इनकार: सवाल है कि फलस्तीन को मान्यता देने वाले देश इसे केवल प्रतीक तक सीमित रखेंगे या फिर इस्राइल और अमेरिका को चुनौती देते हुए इस पर अमल भी कराएंगे? फलस्तीन को मान्यता देने के पीछे का सच क्या है, क्या इजरायल का अतिवाद एक कारण है और अरब देश इसे कैसे देख रहे हैं? इजरायल कभी ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ को स्वीकार नहीं करेगा। उसके पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने मान्यता को ‘बेतुका’ और ‘आतंकवाद को इनाम’ बताया है। इजरायली राष्ट्रपति इसाक हर्जोग भी कह रहे हैं कि यह कदम 'फोर्सेज ऑफ डार्कनेस' को बढ़ावा देने वाला है, यानी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने वाला। जाहिर है, फलस्तीन को मान्यता देने वाले देश आतंकवाद को बढ़ावा देना नहीं चाहते।
कतर अटैक का असर: इजरायल की कार्रवाई पर नजर डालें तो हमास खत्म हो रहा है, लेकिन गाजा के आम लोग भी इसकी कीमत चुका रहे हैं। इससे इनकार नहीं कि इसके लिए हमास जिम्मेदार है, पर इजरायल की भी जवाबदेही बनती है। नेतन्याहू ने कहा है कि ‘जब तक जरूरी होगा, बम गिराएंगे’। हमास के अक्टूबर 2023 वाले हमले को देखते हुए यह बात बहुत गलत भी नहीं लगती, पर दुनिया अंतहीन युद्ध नहीं चाहती। इजरायल ने जिस तरह कतर पर हमला किया, वह पूरी दुनिया को अखरा। संभव है, इसके बाद ये देश इस निष्कर्ष पर पहुंचे हों कि इजरायल को रोकना जरूरी है और इसके लिए फिलिस्तीन को मान्यता देना भी आवश्यक है।
गाजा पर प्लान: इजरायल का मकसद गाजा के लोगों पर पूरा नियंत्रण रखना है। उसके रक्षा मंत्री ने गाजा के लोगों के लिए एक योजना पेश की थी, जिसके तहत दक्षिणी राफाह के खंडहरों पर नया शहर बसाया जाएगा। शुरू में यहां 6 लाख बेघर फिलिस्तीनियों और बाद में 20 लाख को बसाने की योजना है। कागज पर इसका संचालन अंतरराष्ट्रीय संगठनों के हाथों में होगा, लेकिन वास्तविक नियंत्रण इजरायली सेना (IDF) के पास रहेगा।
कानून के खिलाफ: योजना के विरोध में 16 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कानूनविदों ने पत्र लिखा है। उनका कहना है कि यह योजना गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों की श्रेणी में आ सकती है, मसलन - युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और कुछ स्थितियों में नस्लीय विनाश। यह अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। लेकिन, मुश्किल है कि ये कानून इजरायल को रोक पाएं, इसलिए फिलिस्तीन को मान्यता देना जरूरी है।
युवाओं का दबाव: ये देश केवल मानवीय कारणों से फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए प्रेरित नहीं हुए। मसलन कहा जा रहा है कि फ्रांस ने अपने देश के मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए मान्यता दी। लेकिन असल तस्वीर इससे कहीं गहरी है। दुनिया के कई विश्लेषक उस वर्ग को नजरअंदाज कर रहे हैं जो सबसे बड़ा डेमोग्राफिक समूह है यानी Gen Z। युवाओं का दबाव कई यूरोपीय सरकारों पर दिख रहा है। इटली में हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर हिंसक विरोध किया, क्योंकि प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है।
मुश्किल राह: फिलहाल अरब देशों की दिशा तय नहीं दिख रही है और मान्यता देने वाले देश प्रतीकात्मक स्वतंत्रता के साथ खड़े हैं। ऐसे में देखना है कि फिलिस्तीनी-ब्रिटिश शेफ और Palestine on a Plate: Memories from My Mother's Kitchen की लेखिका Joudie Kalla के ये शब्द सार्थकता के फलक पर अपना झंडा फहरा पाते हैं या नहीं, ‘हम यह बताना चाहते हैं कि हम अपने अधिकारों, अपनी स्वतंत्रता और अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ रहे हैं और अपने घर वापस जाने में सक्षम हैं।' फिलहाल राह इतनी आसान नहीं है।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)
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