भारत के दो दिग्गज बल्लेबाज़ों, रोहित शर्मा और विराट कोहली ने महज़ पांच दिनों के भीतर टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया.
इस ख़बर ने क्रिकेट फ़ैंस को चौंका दिया है.
क़रीब एक महीने बाद भारत इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पांच टेस्ट मैचों की सिरीज़ शुरू करने जा रहा है, और पहले ही मैच में हेडिंग्ले में इन दोनों सीनियर खिलाड़ियों की ग़ैर-मौजूदगी टीम के लिए चिंता की बात मानी जा रही है.
ड्रेसिंग रूम में रोहित और विराट की मौजूदगी से युवा खिलाड़ियों को उनके अनुभव और समझ का बड़ा सहारा मिलता था.

इंग्लैंड में कैसे खेलना है, इस पर रोहित शर्मा की व्यावहारिक और आसान सलाह, और मैदान पर विराट का जोश और उनके खेलने का अंदाज़ टीम के बाक़ी खिलाड़ियों को काफ़ी कुछ सिखा सकता था.
लेकिन क्रिकेट का एक सीधा सच ये भी है कि जब कोई बड़ा खिलाड़ी जाता है, तो कोई न कोई उसकी जगह लेने के लिए तैयार होता है.
सीनियर खिलाड़ियों के तौर पर रोहित और विराट इंग्लैंड जैसे मुश्किल दौरे में टीम को ठहराव और दिशा देने का काम कर सकते थे.
हालांकि, ये याद रखना ज़रूरी है कि बतौर बल्लेबाज़ टेस्ट क्रिकेट में विराट कोहली के पिछले पांच साल कुछ ख़ास नहीं रहे. इस दौरान कोहली ने 65 पारियों में 32.09 के औसत से रन बनाए हैं, घरेलू मैदान पर ये औसत 29.92 रहा, विदेशी दौरों पर 34.12 और दो वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल में सिर्फ़ 30.
वहीं रोहित शर्मा ने 63 पारियों में 36 के औसत से रन बनाए हैं. घरेलू मैदान पर उनका औसत 37.6 और विदेशी दौरों पर 35.5 रहा. 2024 में उन्होंने 26 पारियों में सिर्फ़ 619 रन बनाए, औसत रहा 24.76.
ये ऐसे आंकड़े हैं, जिनके आधार पर शायद ही कोई बल्लेबाज़ टीम में बना रह पाता.
अब रोहित और विराट का महज़ पांच दिनों के अंतर पर संन्यास लेना बड़ा संकेत है. ये दिखाता है कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट में बदलाव का वो दौर जो पुजारा और रहाणे के बाद शुरू हुआ था, वो पूरा हो चुका है.
इंग्लैंड दौरे पर जो भारतीय टीम जाएगी, वो पहली बार पूरी तरह उन खिलाड़ियों से बनी होगी, जिन्होंने क्रिकेट को उस दौर में सीखा है जब वनडे और टी20 ही हर बातचीत और कोचिंग का केंद्र रहे हैं.
आज कई खिलाड़ियों के लिए फ़र्स्ट क्लास या टेस्ट क्रिकेट शायद उतनी अहमियत नहीं रखता, लेकिन चयनकर्ताओं की ज़िम्मेदारी है कि वो ऐसे खिलाड़ियों को पहचानें और प्रोत्साहित करें, जिनके लिए ये फ़ॉर्मेट अब भी मायने रखता है.
भारतीय टेस्ट क्रिकेट का नया चैप्टरइंग्लैंड का ये दौरा भारतीय टेस्ट क्रिकेट के लिहाज़ से एक नया चैप्टर होगा और इसे डर की बजाय उम्मीद के साथ देखने की ज़रूरत है.
भारत ने हाल ही में 2024-25 का बेहद ख़राब सत्र ख़त्म किया है, टीम को लगातार हार मिली है. न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ आश्चर्यजनक तौर पर घरेलू मैदान पर 0-3 और ऑस्ट्रेलिया से 1-3 की हार मिली.
ऐसे में क्रिकेट फ़ैंस को इंग्लैंड में आने वाली मुश्किलों के लिए तैयार रहना होगा, जब तक कि टेस्ट क्रिकेट में नेतृत्व करने वाली बल्लेबाज़ों की एक नई पीढ़ी तैयार नहीं हो जाती. वो बल्लेबाज़ जो कि भारत की विश्वस्तरीय गेंदबाज़ी का साथ दे सकें.
ख़ास बात ये है कि इस बार इंग्लैंड के दौरे पर जाने वाले भारतीय गेंदबाज़ उम्र के मामले में बल्लेबाज़ों से ज़्यादा सीनियर हैं. रवींद्र जडेजा 36 साल के हैं, मोहम्मद शमी 34, जसप्रीत बुमराह और हार्दिक पंड्या 31 साल के हैं.
वहीं बल्लेबाज़ों में सिर्फ़ केएल राहुल (33) और श्रेयस अय्यर (30) ही ऐसे हैं जो इस उम्र के क़रीब पहुंचते हैं.

रोहित के संन्यास के बाद अब सवाल ये है कि भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी कौन संभालेगा? साथ ही विराट कोहली की ख़ाली जगह यानी नंबर- 4 पर बल्लेबाज़ी कौन करेगा?
हालांकि, कप्तानी को लेकर एक तरह की सहमति बनती दिख रही है, ऐसे में नंबर-4 की पोज़िशन से बात शुरू करते हैं.
बल्लेबाज़ी में ये बेहद ख़ास क्रम है, इस पोज़िशन पर पिछले तीन दशकों से सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली जैसे नाम रहे हैं. नंबर-4 पर आमतौर पर वो आता है जिसे टीम का सबसे बेहतर बल्लेबाज़ माना जाता है.
लेकिन इस वक्त भारत की मौजूदा बल्लेबाज़ी लाइन-अप में यशस्वी जायसवाल को छोड़कर ऐसा कोई बल्लेबाज़ नहीं है जिसने अपने प्रदर्शन से ख़ुद को नंबर-4 का विकल्प ख़ुद-ब-ख़ुद साबित किया हो. लेकिन यशस्वी ओपनर बल्लेबाज़ हैं.
पिछले पांच सालों की बात करें तो ऋषभ पंत भारत के सबसे असरदार टेस्ट बल्लेबाज़ रहे हैं.
हालांकि, आंकड़ों को देखें तो ये बात भी सही है कि इस दौरान टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन रोहित शर्मा ने बनाए हैं, 63 पारियों में 2160 रन. लेकिन पंत ने 53 पारियों में 43.55 के औसत से 2134 रन बनाए हैं, जो उन सभी बल्लेबाज़ों में दूसरा सबसे अच्छा स्कोर है जिन्होंने कम से कम चार पारियां खेली हैं.
यशस्वी जायसवाल का औसत 52.88 है, जो औसत के मामले में इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं.
जिन खिलाड़ियों को दौरे के लिए चुना जा सकता है, उनमें सिर्फ़ केएल राहुल ही ऐसे हैं जिन्होंने इंग्लैंड में पहले टेस्ट क्रिकेट खेला है. केएल राहुल ने 2018 में वहां दो शतक लगाए थे और औसत 34.11 रहा था.
श्रेयस अय्यर सीमित ओवरों के क्रिकेट में अच्छी फ़ॉर्म में हैं, लेकिन उन्होंने फरवरी 2024 के बाद से कोई रेड-बॉल मैच नहीं खेला है. अगर उन्हें टेस्ट टीम में वापस बुलाया जाता है, तो ये मौक़ा होगा कि वे दिखा सकें कि उनकी बल्लेबाज़ी हर फ़ॉर्मेट में टिकाऊ बन चुकी है.
टीम में और ज़्यादा युवा बल्लेबाज़ों को शामिल करना समझदारी नहीं होगी, ख़ासकर इंग्लैंड जैसे दौरे पर, जहां कामयाब होने के लिए मज़बूत डिफेंस ज़रूरी होता है, भले ही आजकल आक्रामक खेलने की बात ज़्यादा हो रही हो.
घरेलू क्रिकेट से कौन हो सकता है विकल्पअगर घरेलू क्रिकेट के आंकड़ों को देखें तो करुण नायर को एक विकल्प मानना ग़लत नहीं होगा. करुण ने 2024–25 का घरेलू सीज़न शानदार खेला है.
सबसे ख़ास बात ये है कि उन्होंने फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट में 863 रन बनाए, जिनमें चार शतक और दो अर्धशतक शामिल हैं.
इसके साथ ही काउंटी क्रिकेट में नॉर्थम्पटनशायर (इंग्लैंड) के लिए वो लगातार दो सीज़न में खेले हैं. 2024 में उन्होंने सात मैच में 48.7 के औसत से 487 रन बनाए, जिनमें एक शतक और तीन अर्धशतक शामिल है.
वो 33 साल के हैं और उन्हें आने वाले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप साइकल के लिए मौक़ा देने का सही समय हो सकता है. मिडिल ऑर्डर में वो कारगर साबित हो सकते हैं.
करुण नायर को सबसे ज़्यादा उनकी ट्रिपल सेंचुरी के लिए याद किया जाता है, जो उन्होंने अपने डेब्यू पर लगाई थी. सात पारियों में उनका टेस्ट औसत 62.33 रहा है.
उनका आख़िरी मैच 2017 में धर्मशाला में हुआ था, जहां कुलदीप यादव ने डेब्यू किया था और भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराया था.
इस वक्त मिडिल ऑर्डर के जिन बल्लेबाज़ों के पास बीसीसीआई का कॉन्ट्रेक्ट है, उनमें रजत पाटीदार (31) शामिल हैं, जिन्होंने फरवरी 2024 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ दो टेस्ट खेले लेकिन कुछ ख़ास नहीं कर सके.
वहीं ऋतुराज गायकवाड़ (28) को ज़्यादातर सफेद गेंद के खिलाड़ी के तौर पर देखा जाता है.
अभिमन्यु ईश्वरन और सरफराज़ खान को भी ख़ुद को मिडिल ऑर्डर की दौड़ में आगे मानना चाहिए, क्योंकि वो दो महीने ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर टीम के साथ रहे लेकिन उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला.
कप्तान और कोच
कप्तानी की दौड़ में शुभमन गिल को 'फ्रंट रनर' माना जा रहा है, क्योंकि चयनकर्ता ये समझते हैं कि जसप्रीत बुमराह को बचाकर रखना कितना ज़रूरी है. वो इस समय भारत के सबसे अहम स्ट्राइक बॉलर हैं.
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी के दौरान बुमराह ने ख़ुद को इतना झोंक दिया कि आख़िरी टेस्ट के दूसरे दिन से ही वो पूरी तरह खेल नहीं सके.
कप्तानी एक फ़ुल-टाइम ज़िम्मेदारी है और बुमराह के करियर को लंबा बनाए रखने के लिए उनके गेंदबाज़ी वर्कलोड को संभालना कप्तानी की तुलना में ज़्यादा अहम है, चाहे उनकी ख़ुद की कप्तान बनने की इच्छा हो भी.
केएल राहुल शायद इस बात से थोड़े नाखुश हों कि वो कप्तानी की रेस में पीछे हैं, जबकि जडेजा को छोड़कर उन्होंने बाकी सभी खिलाड़ियों से ज़्यादा टेस्ट खेले हैं.
लेकिन इस बार के आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स के लिए बिना कप्तानी के उन्होंने जैसा प्रदर्शन किया, उससे एक और संकेत गया है.
इस पूरी उथल-पुथल के बीच अब कोच गौतम गंभीर की भूमिका और असर सबसे अहम बन गया है. भारतीय ड्रेसिंग रूम में अब विराट और रोहित जैसे दो सबसे बड़े चेहरे नहीं हैं, और ऐसे में गंभीर के पास पूरी आज़ादी है कि वो टीम को अपनी सोच के हिसाब से ढालें.
अब हर जीत, हर हार और भारतीय टेस्ट क्रिकेट का भविष्य सीधे तौर पर उनके नाम से जुड़ा होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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