उत्तराखंड में पेपर लीक के विरोध में बेरोज़गार युवाओं के नौ दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य सरकार को अपना रुख़ बदलना पड़ा है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून के परेड ग्राउंड से सटी सड़क पर धरना स्थल पर पहुंच कर प्रदर्शनकारियों से बातचीत में कहा, "पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी. साथ ही, परीक्षा देने वाले छात्रों पर दर्ज मुक़दमे वापस लिए जाएंगे. इसके लिए युवाओं को नामों की सूची देनी होगी."
शुरुआत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना को "नकल जिहाद" कहकर अलग रंग देने की कोशिश की थी, लेकिन युवाओं के व्यापक विरोध और आंदोलन ने सरकार को बैकफ़ुट पर ला दिया.
धामी को आख़िरकार सीबीआई जांच की घोषणा करनी पड़ी है. लेकिन उनके आश्वासन के बावजूद युवा और विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं.
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बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष राम कांडवाल ने बीबीसी को बताया, "मुख्यमंत्री ने दो प्रमुख मांगें मान ली हैं- सीबीआई जांच और मुक़दमे हटाना. हालांकि, संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा रद्द करने के मुद्दे पर धामी ने कहा है कि इस पर सात से दस दिनों के भीतर फ़ैसला लिया जाएगा."
राम कांडवाल के मुताबिक़, "अब हम धरने को स्थगित करेंगे, लेकिन अगर परीक्षा निरस्त नहीं हुई तो नई तारीख़ तय कर फिर से आंदोलन शुरू करेंगे. अगर सरकार ने वादे पूरे नहीं किए तो पहले से दस गुना ज़्यादा संख्या में युवा सड़क पर उतरेंगे."
सीएम धामी की घोषणा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार से बीजेपी सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी युवाओं के पक्ष में बयान दिया.
उन्होंने कहा, "उत्तराखंड वालों को किसी से राष्ट्रभक्ति सीखने की ज़रूरत नहीं है. हमारे बच्चे हैं और बहुत अच्छे हैं. जिस तरह से उन्होंने यह आंदोलन चलाया वह अपने आप में एक इतिहास है."
युवाओं ने फ़िलहाल अपना आंदोलन स्थगित कर दिया है, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया है कि अगर वादों पर अमल नहीं हुआ तो वे फिर सड़कों पर उतरेंगे.
साल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा बीजेपी के लिए चुनौती बन चुका है. इस मामले में युवाओं की नाराज़गी और विपक्ष का आक्रामक तेवर सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है.
प्रदर्शन की शुरुआत कैसे हुई?21 सितंबर को हुई स्नातक स्तरीय परीक्षा का प्रश्नपत्र हरिद्वार के एक परीक्षा केंद्र से महज़ 35 मिनट बाद ही बाहर भेजे जाने की पुष्टि होते ही राज्यभर में हलचल देखने को मिली.
देखते ही देखते इस मुद्दे पर बेरोज़गार युवाओं और परीक्षार्थियों का आक्रोश फूट पड़ा.
उसी दिन से देहरादून के परेड ग्राउंड से सटी सड़क पर सैकड़ों युवक-युवतियाँ धरने पर बैठ गए. ये युवा उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के बैनर तले राज्य सरकार का विरोध कर रहे थे.
इसके अलावा हल्द्वानी, रुद्रपुर, श्रीनगर, हरिद्वार और पिथौरागढ़ जैसे शहरों में भी युवाओं ने जुलूस और रैलियाँ निकालकर सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की.
उनका कहना था कि यह कोई पहली घटना नहीं है और ''पिछले कुछ वर्षों में बार-बार भर्ती परीक्षाओं में धांधली सामने आई है.''
राज्य बनने के बाद 2003 में सबसे पहले, पहली पटवारी भर्ती में धाँधली का आरोप लगा. 2003 में धाँधली का यह मामला पौड़ी ज़िले में सामने आया था.
अप्रैल 2016 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने ग्राम विकास अधिकारी के जो परिणाम घोषित किए तो उनमें एक पिता के दो पुत्रों ने दो अलग-अलग ज़िलों से परीक्षा दी और दोनों ने टॉप किया.
ऐसे अलग-अलग कुछ और मामले थे जिनमें भाई-बहनों ने मेरिट लिस्ट में जगह बनाई थी. जब इस परीक्षा के परिणामों को लेकर ज़्यादा आलोचना होने लगी तो उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ आरबीएस रावत ने इस्तीफ़ा दे दिया था.
2021 में भी पटवारी भर्ती में भी धाँधली सामने आई, जिसमें भाजपा से जुड़े पूर्व नेता हाकिम सिंह को गिरफ़्तार किया गया था.
साल 2022 का विधानसभा भर्ती घोटाला भी ख़ूब चर्चा में रहा. साल 2016 से 2021 के दौरान विधानसभा में बैकडोर से भर्तियों के आरोप लगे थे, जिसे विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने रद्द कर दिया था.
रद्द की गई नियुक्तियों में वर्ष 2016 की 150, 2020 की छह और 2021 की 72 नियुक्तियां शामिल हैं.
युवाओं ने अपने हालिया आंदोलन में तीन प्रमुख मांगें रखी थीं- परीक्षा रद्द कर दोबारा आयोजित की जाए, आयोग के अध्यक्ष को तत्काल हटाया जाए और पूरे मामले की सीबीआई जांच हो.
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शुरुआत में धामी सरकार ने दावा किया कि पेपर लीक नहीं हुआ, बल्कि केवल कुछ पन्ने परीक्षा केंद्र से बाहर गए थे. राज्य के शीर्ष बीजेपी नेताओं ने भी यही बात दोहराई.
इसके बाद पेपर लीक में जब ख़ालिद मलिक नाम के छात्र की संलिप्तता का पता चला, तो मुख्यमंत्री धामी ने इसे "नकल जिहाद" क़रार दिया.
धामी पहले भी 'लव जिहाद', 'भूमि जिहाद', 'मज़ार जिहाद' और 'थूक जिहाद' जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं. उनके आलोचकों का कहना है कि यह शब्दावली मुद्दों से ध्यान भटकाने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का हिस्सा है.
वैसे 21 सितंबर को होने वाली इस परीक्षा से ठीक एक दिन पहले ही साल 2021 की भर्ती परीक्षा में पेपर लीक के अभियुक्त और बीजेपी नेता हाकिम सिंह की गिरफ़्तारी हुई थी.
हाकिम सिंह पर युवाओं से पैसे लेकर सफलता दिलाने का आरोप था. हाकिम सिंह के कई वरिष्ठ बीजेपी नेताओं से क़रीबी रिश्ते बताए जाते हैं.
सरकार और बेरोज़गार संघ का दावाधरना जैसे-जैसे आगे बढ़ा, मुख्यमंत्री धामी ने युवाओं को समझाने की कोशिश की. इसी बीच उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने पिछले चार वर्षों में 25 हज़ार युवाओं को नौकरियाँ दीं और भर्ती प्रक्रिया लगातार जारी है.
लेकिन बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष राम कांडवाल ने राज्य सरकार के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा, "पिछले चार साल में केवल 2,745 स्थायी पदों पर नियुक्ति हुई है, 6,250 पदों को संविदा पर रखा गया और 8,498 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है. हमारे पास इसका पूरा आंकड़ा है और हम सीएम के दावे को ख़ारिज करते हैं."
पिछले चार साल में राज्य सरकार ने कितनी नौकरियां दी हैं, इसकी बीबीसी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका है.
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अल्मोड़ा के रहने वाले संदीप सिंह बिष्ट भी इस भर्ती परीक्षा में बैठे थे. संदीप कहते हैं, "जब पेपर लीक की बात सामने आई तब मन बहुत दुखी हुआ. हम घर से दूर आकर देहरादून में रहकर तैयारी करते हैं, जिसमें ख़र्चा भी बहुत होता है."
"अब ऐसे में परीक्षा में धाँधली का होना पीड़ादायक है. इससे पहले भी भर्तियों में गड़बड़ियाँ हुई हैं. सीबीआई जाँच इसलिए ज़रूरी है कि जिससे असली भ्रष्टाचार सामने आ सकेगा."
जनपद चमोली के नंदनगर घाट के रहने वाले सुरजीत सिंह कहते हैं, "हमने एग्ज़ाम हॉल से बाहर आकर मोबाइल देखा तो व्हाट्सऐप पर पेपर लीक होने का पता चला. इस तरह की घटना साल 2022 में भी हुई थीं, तब भी मैं परीक्षा में बैठा था. अब दोबारा इस तरह की घटना हुई तो सरकार की तरफ़ से बिल्कुल भरोसा उठ गया है."
सुरजीत की मानें तो उनके साथ-साथ घर-परिवार वालों का इंतज़ार बढ़ता जा रहा है. वह कहते हैं, "मानसिक तनाव बहुत है. अब उम्र भी बढ़ती जा रही है तो घर वालों और रिश्तेदारों की भी सुननी पड़ती है."
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वैसे बेरोज़गार युवाओं के आंदोलन पर कई तरह के आरोप लगाने की कोशिशें भी ख़ूब हुईं.
सोशल मीडिया पर कहा गया कि इसमें वामपंथी और "राष्ट्रविरोधी" ताक़तें शामिल हैं.
लेकिन आम जनता, ख़ासकर बेरोज़गार युवाओं का समर्थन लगातार आंदोलनकारियों के साथ बना रहा. कांग्रेस, वामपंथी दलों, उत्तराखंड क्रांति दल और राज्य के आंदोलनकारियों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया.
भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि, "सरकार ने पहले आंदोलन को अराजक कहा, फिर सांप्रदायिक रंग दिया, और अब दबाव में यू-टर्न ले रही है. उन्होंने सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफ़वाहों को शर्मनाक क़रार दिया और मांग की कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई हो."
इंद्रेश मैखुरी ने यह भी आरोप लगाया कि आंदोलन को तोड़ने के लिए बीजेपी समर्थित सोशल मीडिया समूहों ने झूठी अफ़वाहें फैलाईं, आंदोलन में शामिल युवती रजनी, पत्रकार-कार्यकर्ता त्रिलोचन भट्ट और अन्य आंदोलनकारियों को बदनाम करने के लिए आपत्तिजनक पोस्ट डाली गईं.
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कांग्रेस ने धामी की घोषणा को "जनता को गुमराह करने वाला क़दम" क़रार दिया. कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि उनका 3 अक्तूबर को मुख्यमंत्री आवास का "कूच" कार्यक्रम यथावत जारी रहेगा.
उन्होंने यह घोषणा धामी की सीबीआई जांच कराने के भरोसे के बाद की है. उन्होंने कहा है कि राज्य की बीजेपी सरकार पर भरोसा करना कठिन है.
उन्होंने कहा, "साल 2017 में भी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्ग 74 (एनएच-74) घोटाले की जाँच सीबीआई पंद्रह दिन में अपने हाथों में ले लेगी, लेकिन आठ साल बाद भी सीबीआई वह जांच हाथों में लेने नहीं आई."
उन्होंने धामी पर कहा, "केंद्र में बीजेपी की सरकार है और अगर मुख्यमंत्री धामी चाहें तो 24 घंटे के अंदर केंद्र सरकार के आदेश पर यह जाँच सीबीआई टेकओवर कर सकती है. मगर सीएम ने कहा है कि एसआईटी अपनी जाँच जारी रखेगी, यह फिर से उसी एनएच-74 वाली आशंका को जन्म दे रहा है."
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