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डाकू मान सिंह जिसने गोवा को आज़ाद कराने का भारत सरकार को दिया था प्रस्ताव

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Social Media मान सिंह का चार राज्यों की पुलिस 15 साल तक पीछा करती रही

मध्य प्रदेश के शहर भिंड का एक क़िस्सा मशहूर है. एक बार वहाँ ज़बरदस्त सूखा पड़ा. वहाँ के एक गाँव रामपुर की सारी खड़ी हुई फसल सूख गई.

अचानक एक दिन उस गाँव में आठ बैलगाड़ियाँ आ कर रुकीं. उन बोरों में गेहूँ भरा हुआ था. गाड़ीवान ने उन्हें रामपुर वालों तक पहुंचाकर एक साधारण संदेश दिया था, 'मान सिंह की ओर से.'

कैनेथ एंडरसन अपनी किताब 'टेल्स ऑफ़ मान सिंह, किंग ऑफ़ इंडियन डकॉएट्स' में लिखती हैं, "उस समय भारत सरकार ने मान सिंह के ज़िंदा या मुर्दा पकड़े जाने पर 15 हज़ार रुपये का इनाम रखा हुआ था. मान सिंह पर करीब दो सौ हत्याओं और अनगिनत डकैतियों के आरोप थे. इसके बावजूद उसको पकड़ा नहीं जा सका था क्योंकि उसकी मुख़बरी करने के लिए कोई भी सामने नहीं आता था."

उन बैलगाड़ी वालों से पुलिस ने काफ़ी गहन पूछताछ की. उन्हें सिर्फ़ इतना पता चल सका कि एक शख़्स ने एक सप्ताह पहले उनसे संपर्क कर उन्हें 40 मील दूर एक रेलवे स्टेशन पर जाने के लिए कहा था जहाँ मालगाड़ी के एक डिब्बे में रामपुर पहुंचाने के लिए अनाज के कुछ बोरे रखे हुए थे. इस काम के लिए उन्हें प्रति बैलगाड़ी 20 रुपये के हिसाब से 160 रुपये दिए गए थे.

image Rupa Publications कैनेथ एंडरसन की किताब 'टेल्स ऑफ़ मान सिंह, किंग ऑफ़ इंडियन डकॉएट्स'

कैनेथ लिखती हैं, "उस शख़्स ने गाड़ीवान के कान में मान सिंह का नाम लिया था और ये भी कहा था कि अगर उन्होंने वो काम एक हफ़्ते के अंदर पूरा नहीं किया तो वो अगले हफ़्ते के पहले दिन का सूरज नहीं देख पाएंगे इसलिए उन्होंने छठे दिन ही वो सामान रामपुर पहुंचा दिया था."

टाइम पत्रिका में चर्चा image Getty Images

ऐसा बहुत कम होता है कि कोई अंतरराष्ट्रीय ख्याति की विदेशी पत्रिका किसी डाकू के मरने पर उसे कवरेज दे.

टाइम पत्रिका ने अपने 5 सितंबर, 1955 के अंक में 'इंडिया : डेड मैन' शीर्षक लेख में लिखा था, "दिल्ली के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में किसी व्यक्ति का इतना सम्मान और इज़्ज़त नहीं थी जितनी डाकू मान सिंह की थी. उनके अपने पोते की शादी पर दिए गए भोज में इलाके के कई राजाओं और ज़मींदारों ने शिरकत की थी."

सन 1952 में सरकार की बनाई गई मुरैना क्राइम इनक्वाएरी कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि मान सिंह में कोई 'निजी अवगुण नहीं है.'

इसके बावजूद मध्य भारत की उन पुलिस फ़ाइलों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था जिसके काग़ज़ों में दर्ज था कि मान सिंह ने 27 सालों में सैकड़ों हत्याएँ और हज़ारों डकैतियाँ की थीं.

टाइम पत्रिका ने अपने लेख में लिखा, "ये एक अजीब बात थी कि आम लोगों के मन में मान सिंह का सम्मान होने के साथ साथ ख़ौफ़ भी था. रोबिन हुड की तरह मान सिंह एक ज़माने में शरीफ़ आदमी हुआ करता था लेकिन उसके साथ हुए अन्याय ने उसे बाग़ी बना दिया था."

चार राज्यों की पुलिस पीछे लगी image Sheikh Mukhta मान सिंह को पकड़ने के लिए पुलिस ने उस ज़माने में डेढ़ करोड़ रुपये ख़र्च किए जो कि एक बड़ी रक़म हुआ करती थी.

मान सिंह के बारे में कहा जाता था कि कि चार राज्यों के 1700 पुलिसवालों ने 15 वर्ष तक 8000 वर्गमील के इलाके में उसका पीछा किया. पुलिस के साथ हुई करीब 80 मुठभेड़ों में पुलिस को नाकामी ही हाथ लगी.

उसको पकड़ने के लिए पुलिस ने उस ज़माने में डेढ़ करोड़ रुपये ख़र्च किए जो कि एक बड़ी रक़म हुआ करती थी.

मुरैना अपराध जाँच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, "लोग मान सिंह के बारे में कहानियाँ बताते हैं कि किस तरह उसने मुख़बिरों और पुलिसवालों की तभी हत्या की जब वो उनके पीछे लग गए. उन्होंने उन्हीं लोगों का अपहरण किया जिनके पास काफ़ी पैसा था. उन्होंने स्कूल की इमारत के लिए धन इकट्ठा करने के लिए ही ज़मीदारों से ज़बरदस्ती की."

कैनेथ एंडरसन लिखती हैं, "मान सिंह के बारे में कहा जाता है कि वो शराब नहीं पीता था और पूरी तरह से शाकाहारी था. वो बहुत धार्मिक व्यक्ति था और भोर होने से पहले नदी में नहाता था. नहाने के तुरंत बाद वो काली के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करता था. उसने कई मंदिर बनवाए थे जिनको बनवाने के लिए धन अमीरों को लूटने के बाद आया था."

कई मंदिरों में मान सिंह ने पीतल की घंटियों लगवाई थीं जिन पर उसका नाम था. बटेश्वरनाथ मंदिर में होने वाले धार्मिक समारोह में मान सिंह हमेशा शामिल होता था. एक बार पुलिस को इसका पता चल गया और उसने मंदिर को चारों तरफ़ से घेर लिया लेकिन इसके बावजूद मान सिंह वहाँ भेष बदल कर पहुंच गया.

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फ़िल्मी डाकू की तरह रोबदार image ANI आगरा के गांव खेड़ा राठौर में बना डाकू मान सिंह का मंदिर

मान सिंह का जन्म सन 1890 में आगरा के पास राठौर खेड़ा गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम बिहारी सिंह था और वो गाँव के मुखिया थे. वो खाते पीते परिवार से आते थे और अपने दो पुत्रों नवाब सिंह और मान सिंह के साथ रहा करते थे.

उनके पिता ने बहुत कम उम्र में मान सिंह का विवाह एक सुंदर युवती से करा दिया था. उनके चार बेटे पैदा हुए थे, जसवंत सिंह, सूबेदार सिंह, तहसीलदार सिंह और धूमन सिंह. इसके अलावा उसकी एक बेटी भी हुई जिसका नाम उसने रानी रखा था.

जब मान सिंह सिर्फ़ 24 साल का था उसको अपने गाँव का मुखिया और आगरा ज़िला बोर्ड का सदस्य चुना गया था. उसके लंबे चौड़े शरीर, मिलनसार व्यक्तित्व और युवावस्था से रखी गई दाढ़ी ने उसे मशहूर बना दिया था

डकैती के बारे में झूठी रिपोर्ट

मान सिंह के पिता बिहारी सिंह की एक ज़मीन को लेकर एक शख़्स तल्फ़ी राम से कुछ अनबन हो गई. तब तक मान सिंह के बड़े भाई नवाब सिंह अपने परिवार को छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे.

तभी अचानक उनके गाँव में एक डकैती पड़ी. डकैतों ने गाँव के साहूकार के घर हमला कर उसे छुरा भोंक दिया.

कैनेथ एंडरसन लिखती हैं, "तल्फ़ी राम ने पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखवा दी कि इस डकैती में मान सिंह के बड़े भाई नवाब सिंह का हाथ है. उसको उसके पिता ने शरण दे रखी है. उसने उस साहूकार के यहाँ इसलिए डकैती डाली क्योंकि वो तल्फ़ी राम का दोस्त है. उसने ये भी कहा कि नवाब सिंह के भाई मान सिंह को इस डकैती की जानकारी थी और उसने भी इस डकैती में मदद की थी."

बिहारी सिंह ने इस घटना को अपने परिवार की बेइज़्ज़ती के तौर पर लिया. उन्होंने और उनके बेटे मान सिंह ने तय किया कि वो तल्फ़ी राम को सबक़ सिखाएंगे. मान सिंह अपने चार बेटों के साथ बीहड़ों में जाकर अपने भाई नवाब सिंह से मिल गया.

बेटे जसवंत सिंह की पुलिस मुठभेड़ में मौत image Getty Images सांकेतिक तस्वीर

एक रात मान सिंह ने अपने साथियों के साथ तल्फ़ी राम के घर पर हमला बोल दिया. मान सिंह के हमले में तल्फ़ी राम तो बच गया लेकिन उसके कई साथी मारे गए.

पुलिस ने इस मामले में मान सिंह को गिरफ़्तार कर लिया लेकिन उनका बड़ा भाई नवाब सिंह, मान सिंह का सबसे बड़ा बेटा जसवंत सिंह और भतीजा दर्शन सिंह बच निकले.

एक दिन नवाब सिंह... जसवंत और दर्शन के साथ अपने पिता के घर पर ठहरा हुआ था. तल्फ़ी राम ने अपने कुछ साथियों के साथ उनके घर पर हमला बोल दिया.

कैनेथ एंडरसन लिखती हैं, "उसी समय तल्फ़ी राम ने बहुत चालाकी से पुलिस की भी मदद माँगी. जब पुलिस हथियारों के साथ घटनास्थल पर पहुंची तो तल्फ़ी राम उस जगह से गायब हो गया. नवाब सिंह और उसके दो साथियों ने बेवकूफ़ी में पुलिस पर गोली चला दी. पुलिस ने उन्हें घेरकर उनके बेटे जसवंत सिह और भतीजे दर्शन को मार दिया और नवाब सिंह को गिरफ़्तार कर लिया. उस पर मुक़दमा चलाया गया और उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई."

मान सिंह ने बदला लिया image ANI 1938 में मान सिंह की जेल से रिहाई हुई (सांकेतिक तस्वीर)

उधर पहले से ही 10 साल की जेल की सज़ा काट रहा मान सिंह बदले की आग में जल रहा था. अच्छे व्यवहार के कारण सरकार ने उसे सन 1938 में जेल से रिहा करने का फ़ैसला किया.

चार जुलाई, 1940 की रात मान सिंह ने अपने बचे हुए तीन बेटों और वफ़ादार रूपा के साथ अपने दुश्मनों तल्फ़ी राम और खेम सिंह के घरों पर हमला किया. दो महिलाओं को छोड़कर उन्होंने तल्फ़ी राम के परिवार के सभी सदस्यों की हत्या कर दी.

इसके बाद मान सिंह का डकैत का जीवन शुरू हुआ.15 सालों के अंदर उसकी गिनती भारत के सबसे बड़े डाकू के रूप में की जाने लगी.

मध्य भारत के इलाकों में उसे 'दस्यु सम्राट' कह कर पुकारा जाने लगा. उसके गैंग के सदस्यों में उसके तीन ज़िंदा बचे बेटे सूबेदार सिंह, तहसीलदार सिंह, धूमन सिंह के अलावा चरना, लाखन सिंह, अमृतलाल और उसका दूर का रिश्तेदार रूपा शामिल थे.

छोटे डाकुओं ने नज़राना देना शुरू किया image Getty Images मान सिंह को पकड़ने के लिए सेना के जवानों को बुलाया गया

मान सिंह के बारे में स्थानीय लोग कहते थे कि वह ग़रीबों और वंचितों को नहीं सताता था. उसके निशाने पर होते थे ज़मींदार, अमीर व्यापारी और साहूकार.

जब भारत आज़ाद हुआ तो सरकार ने कई अपराधियों और दोषियों को जेल से रिहा कर दिया. इसी सिलसिले में मान सिंह का बड़ा भाई नवाब सिंह भी जेल से रिहा कर दिया गया.

जेल से बाहर आते ही नवाब सिंह अपने पुराने गाँव गया, एक बंदूक़ उधार ली और तल्फ़ी राम के ज़िंदा बचे दो रिश्तेदारों को गोली मार दी. इसके बाद वो अपने भाई मान सिंह से बीहड़ में जा मिला.

जब चंबल के इलाके में मान सिंह का वर्चस्व बहुत बढ़ गया तो सरकार ने मान सिंह को पकड़ने के लिए सेना के जवानों को बुला लिया.

हालात यहाँ तक पहुंचे कि इलाके के छोटे डाकुओं ने मान सिंह को अपना नेता कहना शुरू कर दिया और नियम से अपनी आमदनी का 10 से 25 फ़ीसदी उसको नज़राने के तौर पर देने लगे.

इससे न सिर्फ़ मान सिंह के धन में इज़ाफ़ा हुआ बल्कि इलाके में उसका दबदबा और बढ़ गया.

सेना को मदद के लिए बुलाया गया image Getty Images सांकेतिक तस्वीर

सन 1951 मे पुलिस के जासूस को ख़बर मिली की मान सिंह के गैंग का एक महत्वपूर्ण सदस्य चरना एक दिन एक गाँव में अपनी पत्नी से मिलने आने वाला है. पुलिस ने चरना को पकड़ने के लिए जाल बिछाया.

इस सबसे बेख़बर चरना और उसके कुछ साथी गाँव में घुसे. घर में घुसने तक पुलिस ने कुछ नहीं किया. उसके बाद 60 पुलिसवालों ने उस घर को घेर लिया. घर की ऊपरी मंज़िल से डकैतों ने पुलिस पर फ़ायरिंग शुरू कर दी.

डाकुओं और पुलिस के बीच अगले 24 घंटों तक गोलीबारी होती रही. पुलिस ने इस बीच 400 और जवानों को अपनी मदद के लिए बुला लिया.

कैनेथ एंडरसन लिखती हैं, "पुलिस के 460 जवानों ने अगले तीन दिनों तक 15 डाकुओं को घेरे रखा. सेना की डोगरा रेजिमेंट को भी उनकी मदद के लिए बुला लिया गया. डाकुओं के घर पर बिल्कुल प्वाएंट ब्लैंक रेंज से तोप के दो गोले छोड़े गए. पूरी इमारत ध्वस्त हो गई. पुलिस के जवान चिल्लाते हुए उसके अंदर घुसे. इमारत के अंदर 15 मृत डाकुओं के शव पाए गए लेकिन चरना फ़रार होने में कामयाब हो गया."

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मान सिंह की निजी समस्याएं image Getty Images 1510 में पुर्तगाली गोवा आए थे

लेकिन दो वर्ष बाद हुई 10 घंटे तक चली पुलिस मुठभेड़ में चरना इतना भाग्यशाली नहीं रहा. जब गोलियाँ चलनी बंद हुईं तो चरना अपने नौ साथियों के साथ मृत पाया गया.

चरना मान सिंह का सबसे बहादुर और ख़ास साथी तो था ही, बल्कि उसका सबसे ख़ास रणनीतिकार भी था.

चरना की महारत इस बात में थी कि उसे पता रहता था कि कब और कहाँ हमला करना है और कब नहीं करना है.

इस बीच मान सिंह को एक निजी समस्या से गुज़रना पड़ा.

कैनेथ एंडरसन लिखती हैं, "मान सिंह ने अपनी बेटी की शादी अपने ही गैंग के एक सदस्य लखन सिंह से की थी लेकिन उसकी बेटी अपने पति के प्रति वफ़ादार नहीं रही और उसे मान सिंह गैंग के एक दूसरे डाकू से प्रेम हो गया. मान सिंह को इससे इतनी ठेस लगी कि उसने अपनी बेटी के प्रेमी को गोली मार दी लेकिन इसके बाद मान सिंह के दामाद ने गैंग छोड़ दिया."

"अपने आख़िरी समय में मान सिंह को आराम, शांति और घर की दरकार हुई. उसने सरकार को पत्र लिखकर कहा कि वो अपनी मर्ज़ी से डाकू और हत्यारा नहीं बना है. भाग्य और परिस्थितियों ने उसे ऐसा बनने के लिए मजबूर कर दिया था."

"एक सच्चा भारतीय होने के नाते वो गोवा जाकर और उसे विदेशी शासन से मुक्ति दिलाकर पुर्तगालियों को समुद्र में फेंकना चाहता है."

भारत सरकार ने उसके पत्र का कोई जवाब नहीं दिया. इससे मान सिंह को बहुत निराशा हुई और इसने उसको और साथियों को हतोत्साहित कर दिया.

गोरखा जवानों की कंपनी बनाई गई image Getty Images सांकेतिक तस्वीर

एक-एक कर उसके साथी या तो गिरफ़्तार होने लगे या घायल या मारे जाने लगे. अंत में उसके साथ सिर्फ़ 18 डाकू रह गए. उसमें उसका बड़ा भाई नवाब सिंह, उसका दूसरा बेटा सूबेदार सिंह और रूपा शामिल था.

नवंबर, 1954 में मध्य भारत के गृह मंत्री नरसिंहराव दीक्षित ने कहा कि अगर मान सिंह को एक साल के अंदर नहीं पकड़ा गया तो वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे.

इस अभियान में मदद देने के लिए उन्होंने गोरखा जवानों की एक विशेष कंपनी का गठन किया. मान सिंह ने पुलिस को झाँसा देने के लिए एक गाँव में एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार करवाया जिसकी शक्ल उससे मिलती-जुलती थी.

इसके बाद ये अफ़वाह उड़ा दी गई कि मान सिंह का एक बीमारी के बाद अचानक निधन हो गया है और उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया है.

लेकिन कुछ दिनों बाद मान सिंह ने फिर डकैती डालनी शुरू कर दी. पुलिस और ख़ासतौर से गठित की गई गोरखा कंपनी उसके पीछे लग गई.

मान सिंह की मौत image Getty Images

मान सिंह भागकर भिंड पहुंचा जहाँ उसने कुँवारी नदी पार करने की कोशिश की, उस समय नदी में बाढ़ आई हुई थी इसलिए मान सिंह नदी को पार नहीं कर पाया. वो भाग कर बीजापुर गाँव पहुंचा.

उसके पीछे पीछे जमादार भंवर सिंह के नेतृत्व में गोरखा पलाटून भी चल रही थी. दोनों में मुठभेड़ शुरू हुई और हज़ारों राउंड गोलियाँ चलाई गईं लेकिन मान सिंह का अंतिम समय आ पहुंचा था. अब तक का सबसे बड़ा डाकू गोलियों से छलनी होकर ज़मीन पर गिरा.

आख़िर में उसके बेटे सूबेदार सिंह ने अपने पिता के शरीर को कवर करने की कोशिश की ताकि उसे और गोलियाँ न लगें. इस प्रयास में उसे भी गलियाँ लगीं और उसकी मृत्यु हो गई.

मान सिंह का साथी रूपा उसके बुज़ुर्ग भाई नवाब सिंह को बचाकर निकालने में कामयाब हो गया.

परिवार वालों को नहीं सौंपा गया शव image OfficialPageBSF/Facebook 1971 की लड़ाई में जनरल सैम मानेकशॉ के साथ तत्कालीन सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे केएफ़ रुस्तमजी

गृह मंत्री दीक्षित को अपने पद से इस्तीफ़ा नहीं देना पड़ा. तुरंत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत और कांग्रेस अध्यक्ष यूएन ढेबर को टेलीग्राम से इसकी सूचना दी गई.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर संपूर्णानंद ने घोषणा की, "किसी व्यक्ति की मृत्यु पर खुशी प्रकट करना कोई बहुत अच्छी बात नहीं होती, मान सिंह मर चुका है. जिन लोगों को मान सिंह ने प्रताड़ित किया है वो लोग अब चैन की साँस ले सकेंगे."

मान सिंह और उसके बेटे के शव को चारपाइयों से बाँध कर भिंड लाया गया. चारपाइयों को खड़ा करके रखा गया ताकि लोग उसे देख सकें.

करीब 40 हज़ार लोग उसके मृत शरीर को देखने आए. कुछ लोग महज़ उत्सुकतावश वहाँ पहुंचे. कुछ लोगों ने उसके मरने पर खुशी प्रकट की लेकिन बहुत से लोग अपने आँसू पोछते हुए भी देखे गए.

उसके बाद मान सिंह के शव को अंतिम संस्कार के लिए ग्वालियर ले जाया गया. मान सिंह की विधवा और बेटे तहसीलदार सिंह ने सरकार से अनुरोध किया कि अंतिम संस्कार के लिए मान सिंह का शव उनके हवाले कर दिया जाए लेकिन सरकार ने उन दोनों की बात नहीं मानी.

बाद में सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे केएफ़ रुस्तमजी ने अपनी किताब 'द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बोर्डरमेन में लिखा, "ये मान सिंह के व्यक्तित्व का कमाल था कि उसने गूजर होते हुए भी एक ब्राह्मण रूपा और एक ठाकुर लखन को अपने गैंग में ख़ास जगह दी. लेकिन जैसे-जैसे मान सिंह बूढ़ा होता गया उसके साथ दस सालों तक रहे उसके साथियों ने उसका साथ छोड़ अपने गैंग बनाने शुरू कर दिए. मान सिंह का अंत तो हो गया लेकिन डकैती की समस्या समाप्त नहीं हुई."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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