ईसाइयों के लिए यह दिन यीशु मसीह को सूली पर चढ़ाये जाने का दिन है. तो फिर क्यों इसे गुड फ्राइडे कहा जाता है?
बाइबल के अनुसार, भगवान का बेटा जिस क्रूस पर मौत के लिए चढ़ाया जाएगा उस क्रूस को ढोने का आदेश उसे दिया गया है. उसे कोड़े मारे जाएंगे.
यह देखना मुश्किल है कि इसमें "अच्छा" क्या है.
कुछ सूत्रों का मानना है कि दिन "अच्छा" है क्योंकि यह पवित्र है या यह "भगवान का शुक्रवार" वाक्यांश का बिगड़ा रूप है.
हालांकि ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में वरिष्ठ संपादक फियोना मैक फेरसन के अनुसार, यह विशेषण पारंपरिक रूप से एक दिन (या कभी-कभी एक सीजन) के लिए इस्तेमाल होता है, जिस दिन "धार्मिक रीति आयोजित किया जाता है."
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी कहती है कि "अच्छा" इस संदर्भ में " एक दिन या सीजन के रूप में उल्लिखित है, जो चर्च के द्वारा पवित्र माना जाता है.
इसलिए क्रिसमस या पैनकेक दिवस पर अभिवादन अच्छा समय कह कर किया जाता है.
पैनकेक दिवस पवित्र दावत से संबंधित है जो ईस्टर से पहले होता है. यह आम तौर पर फरवरी और मार्च के महीने में होता है.
गुड फ्राइडे के अलावा अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध गुड वेडनसडे ईस्टर के पहले मनाया जाता है.
गुड फ्राइडे को पहले 1290 ईस्वी की डिक्शनरी के मुताबिक़ " गौउड फ्राइडे " के नाम से जाना जाता था.
अमेरिकी कैथलिक स्कूल के 1885 से 1960 के मानक पाठ- बाल्टीमोर जिरह के अनुसार, गुड फ्राइडे अच्छा है क्योंकि मसीह ने "आदमी के लिए अपना महान प्यार दिखाया है और उसके लिए हर आशीर्वाद पाया है."
1907 में प्रकाशित पहला कैथलिक विश्वकोश कहता है कि इस शब्द का मूल स्पष्ट नहीं हैं.
यह कहता है कुछ स्रोत इसका मूल "भगवान का शुक्रवार" या "गौटेस फ़्रेटैग" में देखते हैं. जबकि कुछ इसका मूल जर्मन के ग्युट फ़्रेटैग में देखते हैं.
आधुनिक डेनिश और एंग्लो सक्सोंस के द्वारा इसे लंबे शुक्रवार के रूप में उद्धृत किया गया है.
यह भी कहा जाता है कि इस दिन को ग्रीक साहित्य में "पवित्र और महान फ्राइडे" रोमंस भाषा में "पवित्र शुक्रवार" और जर्मन भाषा में दुखी शुक्रवार के रूप में जाना जाता है.
हममें से हर कोई जानता है कि जीसस या यीशु कैसे दिखते थे. पश्चिमी कला में सबसे ज़्यादा बनाई गई तस्वीरों में उनकी तस्वीर का शुमार है.
हर जगह उन्हें लंबे बाल और दाढ़ी के साथ दिखाया गया है. वह लंबी बांहों वाला चोगा पहने हुए हैं (अक्सर यह चोगा सफ़ेद रंग का दिखाया गया है). इस पर एक चादर (अक्सर नीले रंग की) होती है.
यीशु का चेहरा इतना जाना-पहचाना है कि आप इसे पैन केक से लेकर टोस्ट के टुकड़ों में भी पहचान सकते हैं. लेकिन जैसा इनमें दिखता है क्या यीशु वैसे ही दिखते थे? शायद नहीं.
दरअसल, यीशु की जो जानी-पहचानी छवि दिखती है वह यूनानी साम्राज्य की देन है. चौथी सदी और उसके बाद से ईसा मसीह की बाइजन्टाइन छवियां प्रतीकात्मक ही रही हैं. उससे आप अंदाज़ा लगा सकते थे कि यीशु ऐसे थे लेकिन इसमें इतिहास के नज़रिये से सटीकता का अभाव है.
यीशु की बनाई ये तस्वीरें गद्दी पर बैठे एक सम्राट की तस्वीर पर आधारित थीं. रोम में सांता प्यूडेनजाइना के चर्च की वेदी में की गई पच्चीकारी में यह छवि दिखती है.
जीसस सोने का टोगा (चोगा) पहने हैं. वह पूरी दुनिया के स्वर्गिक शासक के तौर पर दिखाए गए हैं. यह गद्दी पर बैठे लंबे बालों और दाढ़ी वाले जिउस की तरह दिखाए गए है.
जिउस प्राचीन यूनानी धर्म के सर्वोच्च देवता हैं और ओलंपिया में उनका प्रसिद्ध मंदिर है. इसमें उनकी जो मूर्ति है, उसी के आधार पर यीशु की भी तस्वीरें मिलती हैं. यह मूर्ति इतनी प्रसिद्ध है कि रोमन सम्राट ऑगस्टस के पास भी इसी शैली में बनाई गई इसकी प्रतिकृति थी.
बाइजन्टाइन कलाकारों ने ईसा मसीह को स्वर्गिक शासन करते ब्राह्रांड के शासक के रूप में दिखाया. वे उन्हें जिउस के युवा रूप में दिखा रहे थे.
लेकिन समय के साथ स्वर्गिक यीशु की इस छवि के विजुअलाइज़ेशन में परिवर्तन हुआ है. बाद में इसमें हिप्पी लाइन के आधार पर परिवर्तन किए गए और अब तो इस पर बनी यीशु की शुरुआती तस्वीरें ही स्टैंडर्ड बन गई हैं.
सवाल यह है आख़िर यीशु वास्तव में कैसे दिखते थे? चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि सिर से लेकर पाँव तक वह कैसे थे?
शुरुआती ईसाई लोग, ईसा मसीह को एक स्वर्गिक देवता के तरह नहीं दिखा रहे थे. उन्होंने उन्हें एक वास्तविक व्यक्ति की तरह ही दिखाया. उसमें उनकी न तो दाढ़ी थी और न लंबे बाल.
लेकिन एक यायावर साधु की तरह जीसस की छवि एक दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में बनाई जाती रही होगी. शायद यायावरी की वजह से वे दाढ़ी नहीं कटाते होंगे. इसीलिए यीशु की तस्वीरों में उन्हें दाढ़ी वाले शख्स के तौर पर दिखाया गया.
बिखरे बालों और दाढ़ी एक दार्शनिक की निशानी मानी गई होगी. ऐसा व्यक्ति (वैसा संत जो दुनियावी चीज़ों से ऊपर की चीज़ों के बारे में सोचता हो) जो औरों से थोड़ा हट कर हो.
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