जेमिमा रॉड्रिग्स आगे अपने करियर में जो कुछ भी हासिल करें, लेकिन उन्होंने वो पारी खेल ली है जिसके लिए वो हमेशा तब तक याद की जाएँगी, जब तक पुरुष और महिलाएँ क्रिकेट खेलते रहेंगे.
भारतीय पारी के साढ़े तीन घंटे एक तरह से जेमिमा के लिए ये खोजने का रास्ता थे कि उनके भीतर कितनी प्रतिभा है, वो कितना हासिल करने में सक्षम हैं और आगे वो और क्या कुछ हासिल कर सकती हैं.
मैदान में मौजूद और दुनिया भर में देख रहे करोड़ों दर्शकों ने पहली बार जेमिमा की असली भूमिका और उनकी अहमियत को महसूस किया.
अब तक जेमिमा रॉड्रिग्स अपनी साथी खिलाड़ियों के लिए बहुत कुछ थीं- फ़्रंटलाइन बैटर, ऊँचे दर्जे की फ़ील्डर, ड्रेसिंग रूम में प्रेरणा देने वाली साथी और सोशल मीडिया स्टार.
लेकिन सेमीफ़ाइनल में हमने उन्हें नए अवतार में देखा. बड़े मैच में शानदार खेलने वाली खिलाड़ी और एक ऐसी लीडर जो उदाहरण पेश करती हैं.
प्रेशर कुकर जैसे माहौल में और अपने खेल के सबसे बड़े मंच पर, रॉड्रिग्स ने दिखाया कि उनका नियंत्रण सिर्फ़ अपने खेल पर नहीं, बल्कि अपने दिमाग़ पर भी है.
इससे उन्हें फ़र्क नहीं पड़ रहा था कि दूसरी तरफ़ क्या हो रहा है. ना ही तब जब स्मृति मंधाना लेग साइड पर निक करते हुए दुर्भाग्यपूर्ण तरीक़े से आउट हुई और ना ही तब जब हरमनप्रीत कौर पारी में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहीं थीं या ना ही जब हरमनप्रीत आउट हो गईं या फिर तब, जब रिचा घोष और दीप्ति शर्मा ने भी पारी में उनका साथ छोड़ दिया.
ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी मैदान पर पूरी लगन और हिम्मत के साथ खेल रहे थे, जो हमारी अपनी फ़ील्डिंग की तुलना में उलट लग रहा था.
शायद अब यह मायने नहीं रखता कि जेमिमा के आसपास क्या हो रहा था. कई बार वो रन आउट से बचीं, कई नज़दीकी रिव्यू लिए गए और दो बार उनका कैच भी छूटा.
अगली ही गेंद पर वो फिर से पूरी तरह तैयार थीं और पारी की रफ़्तार पूरी तरह उनके नियंत्रण में थीं.
उन्होंने जिस तरह इस पारी को खेला और अपने तेवर बनाए रखे, इसे क्रिकेट अकादमियों और मैनुअल में पढ़ाया जाएगा.
मानसिक मज़बूती सिखाने के लिए उनकी पारी को दिखाया जाएगा.
'ज़ोन' में जेमिमा Alex Davidson-ICC/ICC via Getty Images जेमिमा के अलावा हरमनप्रीत कौर के लिए भी इस वर्ल्ड कप में सफ़र आसान नहीं रहा. शुरुआती दो मैचों में जीत के बाद भारतीय टीम ने लगातार तीन मैच गँवा दिए थे
 Alex Davidson-ICC/ICC via Getty Images जेमिमा के अलावा हरमनप्रीत कौर के लिए भी इस वर्ल्ड कप में सफ़र आसान नहीं रहा. शुरुआती दो मैचों में जीत के बाद भारतीय टीम ने लगातार तीन मैच गँवा दिए थे   पारी की 10वीं गेंद पर जेमिमा रॉड्रिग्स मैदान में उतरीं. गार्ड लेते ही यह साफ़ दिख गया था कि उन्होंने ठान लिया है कि जब तक काम पूरा नहीं होगा, वो कहीं नहीं जाएँगी.
उन्होंने अर्धशतक और शतक पूरा करते हुए किसी तरह का जश्न नहीं मनाया, शतक बनाकर भी वो लक्ष्य हासिल करने की तरफ़ आगे बढ़ गईं. उनका ध्यान सिर्फ़ टारगेट पर था, स्कोरबोर्ड पर नहीं.
उन्होंने भीड़, डीजे या आसपास के किसी शोर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
इससे दो बातें साफ़ होती हैं, पहली, उनकी अद्भुत एकाग्रता और दूसरी, यह कि वो उस अवस्था में पहुँच गई थीं जिसे खिलाड़ी 'द ज़ोन' कहते हैं.
सभी खिलाड़ी और एथलीट इसका सपना देखते हैं लेकिन इसका अहसास उन्हें तब ही होता है, जब ये पल गुज़र जाता है.
 BBC भारतीय पारी के दूसरे ओवर में बल्लेबाज़ी करने उतरीं जेमिमा को पारी शुरू होने से पाँच मिनट पहले तक ये तक मालूम नहीं था कि उन्हें नंबर तीन पर खेलना है
 BBC भारतीय पारी के दूसरे ओवर में बल्लेबाज़ी करने उतरीं जेमिमा को पारी शुरू होने से पाँच मिनट पहले तक ये तक मालूम नहीं था कि उन्हें नंबर तीन पर खेलना है   रॉड्रिग्स पाँच फुट तीन इंच या पाँच फुट चार इंच लंबी हैं.
उनका शरीर हल्का है और वो पॉवर हिटर नहीं मानी जाती हैं. इस वर्ल्ड कप के शीर्ष 10 बल्लेबाज़ों में से वो अकेली ऐसी हैं, जिन्होंने कोई छक्का नहीं मारा है.
अपने आठ साल से लंबे करियर में भारत के लिए खेले गए 173 मैचों में उन्होंने सिर्फ़ 26 छक्के मारे हैं. इनमें से 21 टी-20 में हैं और पाँच वनडे में.
बचपन में जब वो क्रिकेट खेल रही थीं, उन्हें मुंबई क्रिकेट की सबसे उम्मीद भरी प्रतिभाओं में माना जाता था.
उन्होंने 13 साल की उम्र में अंडर-19 क्रिकेट खेल ली थी.
महिला क्रिकेट की महान पूर्व खिलाड़ियों की तरह उन्होंने भी रन बनाने की लगातार भूख और लगन दिखाई थी.
लेकिन महिला क्रिकेट में जब पूरा फ़ोकस मुख्य रूप से टी-20 क्रिकेट पर हो गया, हरमनप्रीत की ऐतिहासिक 171 रनों की पारी और शेफ़ाली वर्मा और रिचा घोष के उभार से, ऐसी संभावना बनी कि जेमिमा की शैली को कुछ पुराना सा समझा जाने लगे.
जेमिमा की तकनीक मिताली राज की क्लासिक और पारंपरिक बल्लेबाज़ी जैसी थी और हर साल इस शैली के खिलाड़ी कम हो रहे थे.
टीम प्लेयर से मैच फ़िनिशर तक का सफ़रइस वर्ल्ड कप ने हमें ये दिखाया है कि आधुनिक क्रिकेट में जेमिमा रॉड्रिग्स ने जो जगह अपने लिए बनाई है, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
टीम से बाहर रहने के दिनों में और अपने निजी अभ्यास के लंबे घंटों में, उन्होंने व्हाइट बॉल क्रिकेट के लिए अपनी ख़ुद की शैली तैयार की.
इसमें उन्होंने न सिर्फ़ ख़ुद को टीम की सबसे फ़िट खिलाड़ियों में शामिल किया, बल्कि बेहतरीन फ़ील्डर भी बनीं चाहे बाउंड्री पर दौड़ना हो या इनर रिंग में कैच पकड़ना.
गुरुवार रात नवी मुंबई में जेमिमा की बल्लेबाज़ी ने यह दिखा दिया कि प्रभावशाली व्हाइट बॉल क्रिकेट वास्तव में कैसा दिखता है और कैसे खेला जाता है.
आख़िरी ओवरों में, चाहे टीम लक्ष्य बना रही हो या उसका पीछा कर रही हो, रोड्रिग्स स्कोरबोर्ड का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लेती हैं.
वो दबाव में भी शांत रहती हैं और जैसा विशेषज्ञ कहते हैं, "अंत तक अपने खेल का संतुलन बनाए रखती हैं."
लक्ष्य दिमाग़ में और नज़र गेंदबाज़ पर रखते हुए वो अपने शॉट्स का चुनाव बदलती रहती हैं.
उन्हें सही वक़्त पर जोख़िम भरे शॉट खेलने की समझ है, जैसे 48वें ओवर में खेला गया लैप शॉट, जिसने स्कोर को प्रति गेंद एक रन तक ला दिया.
उन्हें यह भी पता है कि कब कट और ड्राइव के ज़रिए गेंद को गैप में भेजकर रन बटोरे जा सकते हैं.
बड़े मैचों में बड़ा खेल, यही है जेमिमा की पहचान Alex Davidson-ICC/ICC via Getty Images जेमिमा रॉड्रिग्स को उनके पिता इवान रॉड्रिग्स बधाई देते हुए
 Alex Davidson-ICC/ICC via Getty Images जेमिमा रॉड्रिग्स को उनके पिता इवान रॉड्रिग्स बधाई देते हुए   न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ खेले गए भारत के पिछले नॉकआउट मैच में भी जेमिमा ने अपनी इस क्षमता की झलक दिखा दी थी.
इस मैच में हार का मतलब होता प्रतियोगिता से बाहर होना.
भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए शुरुआती साझेदारी में 200 रन बनाए, लेकिन जेमिमा की 55 गेंदों पर 76 रन की पारी ने अंतिम 10 ओवरों में 86 रन जोड़ने में मदद की और भारत के स्कोर को 340 तक पहुँचा दिया.
उत्साही न्यूजीलैंड टीम के लिए भी यह स्कोर बहुत बड़ा साबित हुआ.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ दाँव और बड़ा था, अपनी बल्लेबाज़ी और रणनीतिक कौशल का पूरा प्रदर्शन करते हुए जेमिमा ने अपने उसी खेल को अगले स्तर पर पहुँचाया.
1980 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सीमित ओवर मैचों की शुरुआत हुई थी.
तब से अब तक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई भारत की सबसे शानदार व्हाइट बॉल पारियों में जेमिमा रॉड्रिग्स केंद्र में रहीं.
जेमिमा को अब तक सिर्फ़ एक बेहतरीन टीम खिलाड़ी माना जाता था.
वो स्मृति मंधाना और इस विश्व कप में प्रतीका रावल की सहयोगी की भूमिका निभाती थीं.
लेकिन अब जेमिमा रॉड्रिग्स महिला वर्ल्ड कप के फ़ाइनल मुक़ाबले में एक नई ताक़त और विश्वास के साथ उतरेंगी. वो आत्मविश्वास जो बड़े मैच जिताता है.
अगर आप महिला क्रिकेट की सबसे मज़बूत टीम के सामने डटकर खेल सकती हैं और उसे हरा सकती हैं, तो फिर आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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