
कर्नाटक विधानसभा चुनाव मई, 2023 से पहले राज्य में मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में नई दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया के दौरान आलंद विधानसभा क्षेत्र के क़रीब छह हज़ार मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की गई थी.
राहुल गांधी के आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी करके बताया कि आलंद में 6018 मतदाताओं का नाम हटाने के लिए फ़ॉर्म 7 के ज़रिए आवेदन दिया गया था, ये आवेदन ऑनलाइन सबमिट किए गए थे. इसमें केवल 24 आवोदन सही पाए थे जबकि 5,994 आवेदन ग़लत थे.
राहुल गांधी के आरोपों के बाद बीबीसी हिंदी की टीम राज्य के कलबुर्गी ज़िले के आलंद विधानसभा पहुंची और उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश की, जिनके नाम हटाए जाने को लेकर दावे किए जा रहे हैं.
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'फ़ॉर्म 7 में अलग फ़ोन नंबर दर्ज़ था'31 साल के चंद्रकांत दावा करते हैं कि वोटर लिस्ट से अपना नाम काटे जाने की पहली सूचना उन्हें दिसंबर, 2022 में बूथ लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) से मिली थी. उनसे पूछा गया था कि क्या वह अपना घर बदल रहे हैं. और क्या यही वजह है कि वो वोटर लिस्ट से अपना नाम हटवाना चाहते हैं.
चंद्रकांत ने बीबीसी हिन्दी से बताया, "मैंने बीएलओ से कहा था कि मेरा नाम ना काटा जाए. अगले दिन, हम दोस्त लोग आपस में इस बारे में बात कर रहे थे. हमने इस बारे में कांग्रेस नेता बीआर पाटिल से बात करने का फ़ैसला किया. उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र के दूसरे इलाकों में भी इस तरह की घटना होने की बात कही."
चंद्रकांत एक एनजीओ के लिए काम करते हैं, जिसे बीआर पाटिल चलाते हैं और यह भी एक वजह रही है कि वे इसकी शिकायत लेकर पाटिल के साथ पहुंचे.
चंद्रकांत ने बताया, "वोटर लिस्ट से मेरा नाम हटाने के लिए फ़ॉर्म 7 भरा गया था, जिसमें भरने वाले के नाम की जगह मेरे गांव की एक महिला का नाम था. शादी के बाद वो दूसरे गांव चली गई थी."
चंद्रकांत ने कहा, "लेकिन फ़ॉर्म 7 में दर्ज नंबर उस महिला का नहीं था. जब कोई वोटर लिस्ट से नाम हटाने के लिए अप्लाई करता है, तब उसके फ़ोन नंबर पर एक ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) आता है. लेकिन फ़ॉर्म 7 में एक अलग नंबर दर्ज़ था. जिस पर किसी से संपर्क भी नहीं हो पा रहा था."
आलंद विधानसभा क्षेत्र पिछले हफ़्ते सुर्खियों में तब आया, जब राहुल गांधी ने मीडिया को बताया कि कैसे 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले 6 हज़ार से अधिक मतदाताओं के नाम काटने की कोशिश की गई थी.
राहुल गांधी के बयान के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग ने प्रेस नोट जारी करके बताया है कि इस पूरे मामले की जांच के बाद वोटरों के नाम हटाने का काम रद्द कर दिया गया और राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी ने पुलिस से शिकायत भी दर्ज कराई.
राहुल गांधी ने भी यह माना है कि कर्नाटक सीआईडी इस मामले की जांच कर रहा था. उन्होंने यह भी दावा किया है कि चुनाव आयोग इस जांच में सहयोग नहीं कर रहा है क्योंकि कर्नाटक सीआईडी से 'डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस और पोर्ट्स' शेयर नहीं किए गए हैं, जबकि इसके लिए 18 ख़त लिखे गए थे.
डेस्टिनेशन एड्रेस और पोर्ट्स से उन लोगों की लोकेशन डिटेल्स पता लगाने में मदद मिलेगी, जिन्होंने मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की थी.
इस तकनीकी जानकारी की अहमियत के बारे में बताते हुए कई टेक कंपनियों के पूर्व सीईओ और चीफ़ टेक्नोलॉजी ऑफ़िसर रह चुके माधव ए देशपांडे ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस और पोर्ट से उसी तरह की मदद मिलेगी, जिस तरह सीआईडी साइबर फ़्रॉड का पता लगाकर अपराधियों को पकड़ती है."

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चंद्रकांत जैसे कई मामले बीआर पाटिल के गृह गांव सरसंबा में और उससे सटे गांव सावलेश्वर में भी देखने को मिले.
सरसंबा के किसान शिवानंद भाकरे ने बताया कि उनके गांव में 60 साल की मालव्वा नाम की कोई महिला नहीं है लेकिन इस नाम से आवेदन देकर कई मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की गई थी.
वोटर लिस्ट से नाम हटाने के लिए फ़ॉर्म 7 आवेदनों में महिला के नाम के आगे दिए गए मोबाइल नंबर भी कर्नाटक के नहीं थे.
शिवानंद ने कई नंबर डायल किए, लेकिन उनके ट्रूकॉलर ऐप पर एक नंबर उत्तर प्रदेश का और दूसरा आंध्र प्रदेश का निकला. दोनों नंबरों पर किसी ने कॉल नहीं उठाया. कॉल करने पर वही रिकॉर्डेड संदेश सुनाई दिए कि यह नंबर सेवा में नहीं है या इस पर इनकमिंग कॉल बंद है.
शिवानंद ने हमें कई दूसरे वोटरों से मिलवाया जिनके नाम या उनके रिश्तेदारों के नाम हटाने का आवेदन दिया गया था.
खेती किसानी करने वाले श्रीमंत ने कहा, "मेरे बेटे का वोट काट दिया गया था. वह हमारे साथ यहीं रहता है. वह नौकरी के लिए बेंगलुरु गया है. जब हमें पता चला कि उसका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया, तो हमने अपने नेता बीआर पाटिल से संपर्क किया और उन्होंने उसका नाम वापस जुड़वा दिया. और हां, हमारे गांव में मालव्वा नाम की कोई महिला नहीं है."
योगीराज गुरुलिंगप्पा ने बताया कि उनके भाई और उनकी पत्नी के नाम भी हटाने की सिफ़ारिश की गई थी.
"मेरे भाई एक कॉलेज में प्रिंसिपल हैं, लेकिन उनका वोट हमारे पोलिंग बूथ पर है. बीआर पाटिल से शिकायत करने के बाद, हम तहसीलदार के ऑफ़िस गए और उनसे कहा कि उनके नाम वापस जोड़े जाएं."
जिनके नाम पर एप्लिकेशन, वो इससे बेख़बर
सरसंबा में मालव्वा के बारे में किसी को पता नहीं था, लेकिन स्थानीय निवासियों और रिश्तेदारों ने निरगुडी में गोधाबाई और सावलेश्वर में पद्मिनी के होने की पुष्टि की. वहां आवेदन इन महिला के नाम से दिए गए थे.
निरगुडी के ग्रामीणों ने बताया कि गोधाबाई इतनी सदमे में थी कि वो मीडिया से बात करने की हालत में नहीं थीं और उनके रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं और भेज दिया.
हालांकि, सावलेश्वर में स्थानीय ग्रामीणों ने लक्ष्मण भीमाशंकर जामदार को बुलाया, जिन्होंने अपनी बहन के नाम के आगे लिखे सभी नंबरों की जांच की. उनमें से एक भी नंबर उनकी बहन पद्मिनी का नहीं था.
लक्ष्मण जामदार ने बीबीसी हिन्दी को बताया, "मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरी बहन ने वोटर लिस्ट से लोगों के नाम हटाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया. यह एक झूठा आरोप है. तीन साल पहले उसकी शादी हो चुकी है और वह यहां वोट देने भी नहीं आई. वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक गांव में रहती है."
ऐसा क्यों हो रहा है?
सरसंबा के पंडित नाम के एक शख़्स ने बताया, "मेरे भाई माणिक और उनके बेटे का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया था. बीआर पाटिल की मदद से उनका नाम वापस जुड़वाया गया. लेकिन मैं यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि हम दलित हैं और इस गांव में लगभग 200 वोट हैं. सबको पता है कि दलितों के वोट कांग्रेस को जाते हैं. मुझे लगता है कि यह सिर्फ़ बीजेपी की मदद के लिए किया गया."
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स्थानीय कांग्रेस नेता बीआर पाटिल भी दावा करते हैं कि उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई थी.
उन्होंने कहा, "मैं 2018 का चुनाव 697 वोटों से हार गया था. 2023 में मुझे हराने की पूरी कोशिश की गई. मुझे हराने की साज़िश रची गई थी. एक, बीजेपी की ओर से और दूसरी मेरे प्रतिद्वंद्वी की ओर से."
बीआर पाटिल ने 2023 का चुनाव 10,348 वोटों से जीता.
उन्होंने कहा, "वोटरों के नाम हटाना लोकतंत्र के लिए ख़तरा है. मैं लोकतंत्र के लिए लड़ रहा हूं. चुनाव आयोग सीआईडी को पूरी जानकारी न देकर बीजेपी को बचाने की कोशिश कर रहा है."
लेकिन कर्नाटक बीजेपी प्रवक्ता डॉ. सुधा हलकाई इन आरोपों से इनकार करती हैं. उन्होंने बीबीसी हिन्दी से कहा, "राहुल गांधी ने मीडिया कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि पिछले 15 सालों से वोट की चोरी हो रही है. पंद्रह साल पहले कांग्रेस सत्ता में थी. बीजेपी को सत्ता में आए अभी सिर्फ़ 11 साल हुए हैं."
उन्होंने कहा, "कांग्रेस जवाहरलाल नेहरू के समय से ही लोगों को बेवकूफ़ बनाने की कोशिश करती आयी है, लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, तो ऐसा नहीं होगा."
क्या किसी के लिए वोटरों के नाम हटाना संभव है?माधव देशपांडे ने बीबीसी हिन्दी को बताया, "चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक़ किसी भी आम आदमी के लिए मतदाताओं के नाम हटाना संभव नहीं है. एक आम आदमी केवल अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल करवा सकता है."
"मतदाता का नाम हटाने का अधिकार केवल ईआरओ या इलेक्शन रिटर्निंग ऑफ़िसर के पास ही है." आलंद निर्वाचन क्षेत्र के मामले में, यह अधिकार एसिस्टेंट कमिश्नर की रैंक वाले अधिकारी के पास है.
नाम हटाने के लिए बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ से एप्लिकेशन को वेरिफ़ाई करना ज़रूरी होता है. बीएलओ की इस रिपोर्ट के बाद ही ईआरओ को वोटर लिस्ट से नाम हटाने का अधिकार मिलता है.
लेकिन नाम हटाने से पहले, नाम हटाने का एप्लिकेशन देने वाले वोटर के मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी भेजा जाता है. (इसीलिए नाम हटाने के लिए आवेदन करने वालों के नंबर बदले गए थे.)
इस पहलू को लेकर माधव देशपांडे क्लोनिंग का शक़ ज़ाहिर करते हैं.
वह बताते हैं, "यह ठीक वैसे ही जैसे साइबर धोखाधड़ी में होता है, जिसमें किसी को फ़ोन आता है और सिम कार्ड क्लोन हो जाता है. इससे साइबर अपराधी को ओटीपी और दूसरी डिटेल, जैसे पीड़ित के बैंक खाते से पैसे निकालने की डिटेल, मिल जाती है. पीड़ित को इस धोखाधड़ी का पता तब चलता है, जब वो अपना बैंक अकाउंट चेक करता है."
आलंद के कुछ गांवों के 113 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए फॉर्म 7 में दर्ज मोबाइल नंबरों की लिस्ट में एक अजीब चीज़ ये है कि ऐसा लगता है कि सिम कार्ड बड़ी मात्रा में खरीदे गए. यह कंपनियों का अपने कर्मचारियों के लिए सिम कार्ड खरीदने जैसा है.
दूसरी अजीब बात यह है कि ज़्यादातर नंबरों के आख़िर में 4, 44 या 444 नंबर हैं. अगर किसी मोबाइल नंबर के आख़िर में 4 के अलावा कोई और नंबर है, तो उसमें एक या दो बार नंबर 4 आया है.
माधव देशपांडे ने कहा,"इस तरह का ऑपरेशन कुछ लोग नहीं कर सकते. और अगर आप इसे बड़े पैमाने पर करते हैं, तो आपको कॉल सेंटर जैसे सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर की ज़रूरत होगी."

कर्नाटक सीआईडी ने डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस और पोर्ट का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन अब तक उसे चुनाव आयोग से मदद नहीं मिली है.
सीआईडी ने डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस की जानकारी के लिए कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के ऑफ़िस को 18 ख़त भेजे हैं.
केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपने प्रेस नोट में कहा है कि कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी ने कर्नाटक पुलिस को संबंधित दस्तावेज़ मुहैया करा दिया है.
हालांकि कर्नाटक के एक सीआईडी अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, "हमें डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस और पोर्ट्स नहीं मिले हैं. यह हमारी जांच के लिए बेहद अहम है, इसके ज़रिए हम उन लोगों तक पहुंच सकते हैं. हमने कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी से कई बार संपर्क किया है, लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला है."
इस जानकारी की इतनी अहमियत क्यों है, ये पूछे जाने पर माधव देशपांडे ने कहा, "वीपीएन या वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क होता है. कोई भी व्यक्ति अपना डेस्टिनेशन छिपाने के लिए इस नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकता है. यह ऐसा है जैसे कोई विदेश में बैठा व्यक्ति वीपीएन के पीछे छिपकर हमारे सर्वर तक पहुंच जाए. यह वैसा ही है जैसे पुलिस साइबर धोखाधड़ी करने वालों की लोकेशन का पता लगाती है."
तो क्या इस बाधा को दूर करने के लिए कोई तकनीक है?
माधव देशपांडे ने कहा, "लाइव कनेक्शन का पता लगाना संभव है. इसे स्निफिंग तकनीक कहते हैं. यह ऐसा लगेगा जैसे कि गैस या पानी की पाइपलाइन का एक छोटा सा पारदर्शी हिस्सा दिखाई दे रहा हो. लेकिन यह तभी संभव है जब लाइव कनेक्शन हो. लाइव कॉल के बाद यह संभव नहीं है."
वह एक महत्वपूर्ण बात कहते हैं, "यह (मतदाताओं के नाम हटाना) दलगत राजनीति से भी आगे है. यह हमारी लोकतांत्रिक बुनियाद को छूता है. इससे राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है."
कर्नाटक सरकार ने राज्य भर में ऐसी शिकायतों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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